पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/८८

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3 ७६ भारतेंदु हरिचन्द्र समय के कई वृद्धजन कहते हैं कि, उनको उस समय लोग 'कलियुग के कै धैया' कहा करते थे। पं० अबिकादत्त व्यास 'विहारी बिहार' में लिखते हैं कि 'दूर से लोग इनकी मधुर कविता सुन आकृष्ट होते थे और समीप आ मधुर श्यामसुन्दर घुघरारे बालवाली मधुर मूर्ति देखकर बलिहारी होते थे और वार्तालाप में इनके मधुर भाषण, नम्रता और शिष्ट व्यवहार से वशम्बद हो जाते थे। भोजन में इनकी मचि विशषत निमकीन वस्तु की ओर अधिक थी। मिष्ठान्न में भी सौंधी चीज ही इन्हे प्रिय थी। फल पर भी इनका विशेष प्रेम था पान खाने का इन्हें व्यसन सा था। एकबार जलस की एक बैठक में आपने सात सौ चौहरा पान खाया था। इनके पान में गुलाब जल या केवड़ा जल अवश्य पड़ता था और हर समय यह पान खाया ही करते थे। इनके मित्रगण कहते थे कि जिस समय यह बात-चीत करते थे उस समय यह ज्ञात होता था कि गुलाब या केवड़े का भभका खुला हुआ है अर्थात् उनके मुख से बहुत ज्यादा सुगध निकला करती थी। शील और दान यह स्वभाव ही से अत्यत कोमल हृदय थे। किसी के कष्ट की कथा सुन कर ही उस पर इनकी सहानुभूति हो जाती थी चाहे वह वस्तुत: झूठी मक्कारी ही क्यों न हो। यह दुख-सुख दोनों ही में प्रसन्न रहते थे और कभी क्रोध करते ही न थे। क्रोध आता भी था तो उसे शांति से दबा लेते चाहे फिर चाहे वह उस क्रोध के पात्र से भापण भी न करें। यह स्वभावत: नम्र थे पर किसी के अभिमान दिखलाने पर वे उसे सहन नहीं कर सकते थे। वे स्वत: कभी किसी से अपनी अमीरी, दातव्यता काव्य-शक्ति आदि गुणों का अभिमान नहीं दिखलाते थे।