पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/९१

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७६ पूर्वज-गण गई और यह दरिद्र हो गए। महाराज की ओर से इन्हें राम- नगर में न आने की आज्ञा थी । भारतेन्दु जी से इन गरीब सज्जन का दुःख न. देखा गया और वे इन्हे लिवा कर एक दिन रामनगर गये । महाराज से जाकर इन्होंने अपनी कृति कह दी और इन पर दया दिखलाने को प्राथना की । काशीराज ने ठोकिया को पच्चीस रुपये की मासिक वृत्ति दी पर अपने सामने आने की आज्ञा नहीं दी। ठोकिया को मार्ग में, जब महाराज की सवारी निकली तब सलाम करने का अवसर दिया गया । महाराज ने इसके बाद भारतेन्दु जी से ठोकिया को रामनगर में फिर न लाने के लिये कह दिया था। भारतेन्दु जी को गुप्त रूप से दान देना भी अधिक प्रिय था लिफाफे में नोट रख कर या पुड़िए में रुपये बाँध कर दे देना इनका साधारण कार्य था । एक अवसर पर घराते हुए रास्ते में एक दरिद्र को देखकर इन्होंने गजरे को जो पहिरे हुए थे उतार लिया और उसमें पाँच रुपये लपेट कर उसीके पास रख दिया। साथ के एक नौकर को कुछ सन्देह हुआ, इससे वह लौट कर जब वहाँ आया तब उसे उसी प्रकार वह गजरा पड़ा मिला। उस दरिद्र के भाग्य में वह नहीं लिखा था, इसलिए उसी नौकर को वे रुपये मिल गए । एक दिन एक पंडित जी इनके दरबार में आकर बैठे। वे कुछ कहने के लिये अवसर देख रहे थे पर लोगों के आने-जाने के कारण उन्हें मौका नहीं मिला। इसी बीच भारतेन्दु जी उठ कर स्नान करने चले गए। वे बेचारे चुप- चाप बैठे रहे । कुछ देर के अनन्तर बाबू साहब एक छोटी सी पेटी लिए हुए आए और उन ब्राह्मण को बुलाकर उसे देते हुए प्रणाम कर बिदा किया । वह कुछ कहना चाहते थे पर उन्हें रोककर कहा कि इसे आप घर ले जाकर देख लीजिएगा और तब यदि कुछ कहना तो आकर कहिएगा । ब्राह्मण