पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/९२

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भारतेंदु हरिचन्द्र देवता अपनी पुत्री के विवाह के लिए सहायता मांगने आए थे और जब उन्होंने घर पहुंचकर पेटी खोला तब उसमें उन्हें कुछ साड़ियाँ और दो सौ रुपए मिले । इच्छा से अधिक मिल जाने से ब्राह्मण बहुत प्रसन्न हुए । भारतेन्दु जो जिस प्रकार लोगों को उत्साहित करके साहित्य-सेवा में लगाते रहे उसी प्रकार लोगों को स्वतन्त्र जीवन व्यतीत करने के लिए व्यापारादि करने में उत्साहित करते थे । बाबू गदाधरप्रसाद सिंह ने शिक्षा समाप्त करने पर मिलती हुई सरकारी नौकरी छोड़कर व्यापार करने की इच्छा से इनसे सहायता चाही । भारतेन्दु जी ने इस कार्य के लिए इन्हें एक सहस्र रुपया सहायता दी थी, जिससे इन्होंने एक प्रेस खोला था । इनके एक शरीक ने प्रेस का सामान हटाकर घर में आग लगा दी और प्रेस के जल जाने का शोर मचाया । भारतेन्दु जी ने कुछ न कहा और उक्त पुरुष उससे बहुत दिनों तक कमाते खाते रहे ! फोटोग्राफी उसी समय आरम्भ हुई थी। काशी में पहिले भरतपुर के राव कृष्णदेव शरणसिंह, भारतेन्दुजी तथा राय वलभद्रदास जी ने फोटोग्राफी सीखा था । यह एक नई चीज थी और इस कला की आय से उस समय के साधारण गृहस्थ अपनी जीविका मजे में चला सकते थे । भारतेन्दु जी ने कई मनुष्यों को फोटो- ग्राफी का सामान खरीद खरीद कर दे दिया था । जादू के खेल आदि के भी सामान इन्होंने कई सज्जनों को दिए, जिससे वे लोग बहुत दिनों तक अपना जीवन निर्वाह करते रहे। इस प्रकार परोपकार में रत रहना इनकी प्रकृति ही ह