पृष्ठ:भारतेन्दु हरिश्चन्द्र.djvu/९४

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52 भारतेंदु हरिश्चन्द्र कि चोर तुम्हें न उठा ले गए । जाने दो गया सो गया।' लोगों ने तथा इनके भाई ने बहुत समझाया कि यह सब इसकी बदमाशी है आप इससे अपना रुपया वसूल कीजिए । पर इन्होंने अंत में यही कहा कि 'बेचारा गरीब आदमी है, इसी से कमा खायेगा।' सुनते हैं कि यह हमारे ही बिरादरी के सज्जन हैं, जो अभी तक जीवित हैं और इसी रुपये के बदौलत लखपती बने हुए हैं। स्यात् यही देखा देखी एक सज्जन गोकुलचन्द्र जी से मोती की एक माला कुर्ग के राजा के पास बेंचने के लिए ले गये थे । इन्होंने भी लौट कर उस माला के गुम होने की सदा लगाई पर जब फौजदारी सुपुर्द करने का प्रबन्ध किया गया तब तीन हजार रुपये का एक रजिस्टरीशुदः दस्तावेज़ लिखकर रुपये भर दिए। उक्त सज्जन से भी रुपये वसूल हो जाते पर भारतेन्दु जी को तो 'लक्ष्मी को खाना ही था' इसलिए वे चुप बैठ रहे। इन्होंने 'हरिश्चन्द्र एन्ड ब्रदर्स' के नाम से व्यापार भी चला- या था जिसका विज्ञापन चंद्रिका में बराबर निकलता था। इसमें यह कोठी. महाजनी, जवाहिरात तथा फुटकर वस्तुओं के क्रय- विक्रय करने वाली लिखी है । 'सर्व रोग पर दिव्य औषधि, भी बिकती थी। विलायत से फोटोग्राफी का सामान, घड़ियाँ, चित्र आदि मगाया जाता था। इस कोठी की एक यही विशिष्ट विचि- त्रता थी कि यहाँ जो माल खरीदने आते थे वे उसे उधार ही ले जाते थे और कोठी से बाहर निकलने पर उसे भेंट में मिली हुई वस्तु समझते थे । अस्तु, इस शील संकोच में वह कोठी भी शीघ्र बंद हो गई । इसी शील संकोच में यह स्वत: भी अपनी बस्तु लोगों को भेंट कर देते थे। एक दिन यह मोती की एक माला पहिरे हुए बंबई के गोस्वामी श्री जीवन जी महाराज के यहाँ