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भारत का संविधान

 

भाग ५—संघ—अनु॰ ८२–८४

प्रत्येक जनगणना
के पश्चात् पुनः
समायोजन
८२. प्रत्येक जनगणना की समाप्ति पर लोकसभा में राज्यों को स्थानों के आबंटन और प्रत्येक राज्य प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजन का ऐसे प्राधिकारी द्वारा और ऐसी रीति में पुनः समायोजन किया जायेगा जैसा कि संसद् विधि द्वारा निर्धारित करे;

परन्तु ऐसे पुनः समायोजन से लोकसभा में के प्रतिनिधित्व पर तब तक कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा जब तक कि उस समय वर्तमान सदन का विघटन न हो जाये।] संसद् के सदनों की
अवधि

८३. (१) राज्य-सभा का विघटन न होगा, किन्तु उसके सदस्यों में से यथाशक्य निकटतम एक तिहाई, संसद्-निर्मित विधि द्वारा बनाये गये तद्विषयक उपबन्धों के अनुसार, प्रत्येक द्वितीय वर्ष की समाप्ति पर यथासम्भव शीघ्र निवृत्त हो जायेंगे।

(२) लोक-सभा, यदि पहिले ही विघटित न कर दी जाये तो, अपने प्रथम अधिवेशन के लिये नियुक्त तारीख से पांच वर्ष तक चालू रहेगी और इस से अधिक नहीं तथा पांच वर्षकी उक्त कालावधि की समाप्ति का परिणाम लोकसभा का विघटन होगा :

परन्तु उक्त कालावधि को, जब तक आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में है, संसद्, विधि द्वारा, किसी कालावधि के लिये बढ़ा सकेगी जो एक बार एक वर्ष से अधिक न होगी तथा किसी अवस्था में भी उद्घोषणा के प्रवर्तन का अन्त हो जाने के पश्चात् छः मासकी कालावधि से अधिक विस्तृत न होगी।

संसद् की सदस्यता
के लिये ग्रहता

८४. कोई व्यक्ति संसद् में के किसी स्थान की पूर्ति के लिये चुने जाने के लिये ग्रह न होगा जब तक कि—

(क) वह भारत का नागरिक न हो;
(ख) राज्य सभा के स्थान के लिये कम से कम तीस वर्ष की आयु का, तथा लोक सभा के स्थान के लिये कम से कम पच्चीस वर्ष की आयु का, न हो; तथा
(ग) ऐसी अर्हतायें न रखता हो जो कि इस बारे में संसद्-निर्मित किसी विधि के द्वारा या अधीन विहित की जायें।