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भारत का संविधान

 

भाग ५—संघ—अनु॰ ९०–९३

उपसभापति की
पदरिक्तता, पद-
त्याग तथा पद से
हटाया जाना
९०. राज्य सभा के उपसभापति के रूप में पद धारण करने वाला सदस्य—

(क) यदि सभा का सदस्य नहीं रहता तो अपना पद रिक्त कर देगा;
(ख) किसी समय भी अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा, जो सभापति को सम्बोधित होगा, अपना पद त्याग सकेगा; तथा
(ग) सभा के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत से पारित, सभा के संकल्प द्वारा अपने पद से हटाया जा सकेगा :

परन्तु खंड (ग) के प्रयोजन के लिये कोई संकल्प तब तक प्रस्तावित न किया जायेगा जब तक कि उस संकल्प के प्रस्तावित करने के भिप्राय की कम से कम चौदह दिन की सूचना न दे दी गई हो।

उपसभापति या
अन्य व्यक्ति की,
सभापति पद के
कर्त्तव्यों के पालन
करने की अथवा
सभापति के रूप
में कार्य करने की
शक्ति
९१. (१) जब कि सभापति का पद रिक्त हो, अथवा किसी कालावधि में जब कि उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति के रूप में कार्य कर रहा हो अथवा उस के कृत्यों का निर्वहन कर रहा हो, तब उपसभापति अथवा, यदि उपसभापति का पद भी रिक्त हो तो राज्य सभा का ऐसा सदस्य, जिसे राष्ट्रपति उस प्रयोजन के लिये नियुक्त करें, उस पद के कर्त्तव्यों का पालन करेगा।

(२) राज्य सभा की किसी बैठक में, सभापति की अनुपस्थिति! में उपसभापति, अथवा यदि वह भी अनुपस्थित है तो, ऐसा व्यक्ति, जो सभा की प्रक्रिया के नियमों द्वारा निर्धारित किया जाये, अथवा, यदि ऐसा कोई व्यक्ति उपस्थित नहीं है, तो ऐसा अन्य व्यक्ति, जिसे सभा निर्धारित करे, सभापति के रूप में कार्य करेगा।

जब उसके पद से
हटाने का संकल्प
विचाराधीन हो
तब सभापति
या उपसभापति
पीठासीन न होगा
९२. (१) राज्य सभा की किसी बैठक में, जब उपराष्ट्रपति को अपने पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन हो तब सभापति, अथवा जब उपसभापति को अपने पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन हो तब उपसभापति, उपस्थित रहने पर भी पीठासीन न होगा तथा अनुच्छेद ९१ के खंड (२) के उपबन्ध उसी रूप में ऐसी प्रत्येक बैठक के सम्बन्ध में लागू होंगे जिसमें कि वे उस बैठक के सम्बन्ध में लागू होते हैं जिस से कि यथास्थिति सभापति या उपसभापति अनुपस्थित है।

(२) जब कि उपराष्ट्रपति को अपने पद से हटाने का कोई संकल्प राज्यसभा में विचाराधीन हो तब सभापति को सभा में बोलने तथा दूसरी प्रकार से उसकी कार्यवाहियों में भाग लेने का अधिकार होगा किन्तु अनुच्छेद १०० में किसी बात के होते हुए भी ऐसे संकल्प पर, अथवा ऐसी कार्यवाहियों में किसी अन्य विषय पर मत देने का बिल्कुल हक्क न होगा।

लोक-सभा का
अध्यक्ष और
उपाध्यक्ष
९३. लोक सभा यथासम्भव शीघ्र अपने दो सदस्यों को क्रमशः अपने अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुनेगी तथा जब जब अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का पद रिक्त हो तब तब सभा किसी अन्य सदस्य को यथास्थिति अध्यक्ष या उपाध्यक्ष चुनेगी।