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भारत का संविधान

 

भाग ५—संघ—अनु॰ ९४–९६

अध्यक्ष और उपा-
ध्यक्ष की पद-
रिक्तता, पदत्याग
तथा पद से हटाया
जाना

९४. लोक-सभा के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के रूप में पद धारण करने वाला सदस्य—

(क) यदि लोक-सभा का सदस्य नहीं रहता तो अपना पद रिक्त कर देगा;
(ख) किसी समय भी अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा, जो उपाध्यक्ष को सम्बोधित होगा यदि वह सदस्य अध्यक्ष है, तथा अध्यक्ष को सम्बोधित होगा यदि वह सदस्य उपाध्यक्ष है, अपना पद त्याग सकेगा तथा
(ग) लोक-सभा के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत से पारित संकल्प द्वारा अपने पद से हटाया जा सकेगा;
परन्तु खंड (ग) के प्रयोजन के हेतु कोई संकल तब तक प्रस्तावित न किया जायेगा जब तक कि उस संकल्प के प्रस्तावित करने के अभिप्राय की कम से कम चौदह दिन की सूचना न दे दी गयी हो;
परन्तु यह और भी कि जब कभी लोक-सभा का विघटन किया जाये तो विघटन के पश्चात् होने वाले लोक-सभा के प्रथम अधिवेशन के ठीक पहिले तक अध्यक्ष अपने पद को रिक्त न करेगा।

अध्यक्ष-पद के
कर्त्तव्य पालन की,
अथवा अध्यक्ष के
रूप में कार्य करने
की, उपाध्यक्ष या
अन्य व्यक्ति की
शक्ति

९५. (१) जब कि अध्यक्ष का पद रिक्त हो, तब उपाध्यक्ष, अथवा, यदि उपाध्यक्ष का पद भी रिक्त हो तो, लोक-सभा का ऐसा सदस्य, जिसे राष्ट्रपति उस प्रयोजन के लिये नियुक्त करे, उस पद के कर्त्तव्यों का पालन करेगा।

(२) लोक-सभा की किसी बैठक से अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष, अथवा यदि वह भी अनुपस्थिति हो तो, ऐसा व्यक्ति, जो सभा की प्रक्रिया के नियमों से निर्धारित किया जाये, अथवा यदि ऐसा कोई व्यक्ति उपस्थिति नहीं हो तो, ऐसा अन्य व्यक्ति, जिसे सभा निर्धारित करे, अध्यक्ष के रूप में कार्य करेगा।

जब उसके पद से
हटाने का संकल्प
विचाराधीन हो
तब अध्यक्ष या
उपाध्यक्ष लोक-
सभा की बैठकों
में पीठासीन न
होगा

९६. (१) लोक-सभा की किसी बैठक में, जब अध्यक्ष को अपने पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन हो तब अध्यक्ष, अथवा जब उपाध्यक्ष को अपने पद से हटाने का कोई संकल्प विचाराधीन हो तब उपाध्यक्ष, उपस्थित रहने पर भी, पीठासीन न होगा तथा अनुच्छेद ९५ के खंड (२) के उपबन्ध उसी रूप में ऐसी प्रत्येक बैठक के सम्बन्ध में लागू होंगे जिसमें कि वे उस बैठक के सम्बन्ध में लागू होते हैं जिससे कि यथास्थिति अध्यक्ष या उपाध्यक्ष अनुपस्थित हैं।

(२) जब कि अध्यक्ष को अपने पद से हटाने का कोई संकल्प लोक- सभा में विचाराधीन हो तब उसको लोक सभा में बोलने तथा दूसरे प्रकार से उसकी कार्यवाहियों में भाग लेने का अधिकार होगा तथा अनुच्छेद १०० में किसी बात के होते हुए भी ऐसे संकल्प पर, अथवा ऐसी कार्यवाहियों में किसी अन्य विषय पर, प्रथमतः ही मत देन का हक्क होगा किन्तु मत साम्य होने की दशा में न होगा।