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भारत का संविधान

 

भाग ५—संघ—अनु॰ १०—१०५

सदस्यता के लिये
अनर्हताएँ
१०२. (१) कोई व्यक्ति संसद के किसी सदन का सदस्य चुने जाने के लिये और सदस्य होने के लिये अनर्ह होगा—

(क) यदि वह भारत सरकार के अथवा किसी राज्य की सरकार के अधीन, ऐसे पद को छोड़ कर जिसे धारण करने वाले का अनर्ह न होना संसद् ने विधि द्वारा घोषित किया है, कोई अन्य लाभ का पद धारण किये हुए है;
(ख) यदि वह विकृतचित्त है तथा सक्षम न्यायालय की ऐसी घोषणा विद्यमान है;
(ग) यदि वह अनुन्मुक्त दिवालिया है;
(घ) यदि वह भारत का नागरिक नहीं है अथवा किसी विदेशी राज्य की नागरिकता को स्वेच्छा से अर्जित कर चुका है, अथवा किसी विदेशी राज्य के प्रति निष्ठा या अनुषक्ति को अभिस्वीकार किये हुए है;
(ङ) यदि वह संसद्-निर्मित किसी विधि के द्वारा या अधीन इस प्रकार अनर्ह कर दिया गया है।
(२) इस अनुच्छेद के प्रयोजनों के लिये कोई व्यक्ति भारत सरकार के अथवा किसी राज्य की सरकार के अधीन लाभ का पद धारण करने वाला केवल इसी लिये नहीं समझा जायेगा कि वह संघ का या ऐसे राज्य का मंत्री है।

सदस्यों की अनर्ह-
ताओं विषयक
प्रश्नों पर विनि-
श्चयन

१०३. (१) यदि कोई प्रश्न उठता है कि संसद् के किसी सदन का सदस्य अनुच्छेद १०२ के खंड (१) में वर्णित अनर्हताओं का भागी हो गया है या नहीं तो वह प्रश्न राष्ट्रपति को विनिश्चय के लिये सौंपा जायेगा तथा उसका विनिश्चय अन्तिम होगा।
(२) ऐसे किसी प्रश्न पर विनिश्चय देने से पूर्व राष्ट्रपति निर्वाचन-आयोग की राय लेगा तथा ऐसी राय के अनुसार कार्य करेगा।

अनुच्छेद ९९ के
अधीन शपथ या
प्रतिज्ञान करने से
पूर्व अथवा अर्ह
न होते हुए अथवा
अनर्ह किये जाने
पर बैठने, और मत देने के लिये
दंड
१०४. यदि संसद् के किसी सदन में कोई व्यक्ति सदस्य के रूप में अनुच्छेद ९९ की अपेक्षाओं की पूर्ति करने से पूर्व, अथवा यह जानते हुए कि मैं उसकी सदस्यता के लिये नहीं हूँ अथवा अनर्ह कर दिया गया हूँ अथवा संसद् द्वारा निर्मित किसी विधि के उपबन्धों से ऐसा करने से प्रतिषिद्ध कर दिया गया हूँ, बैठता या मतदान करता है, तो वह प्रत्येक दिन के लिये, जब कि वह इस प्रकार बैठता है या मतदान करता है पाँच सौ रुपये के दंड का भागी होगा जो संघ को देय ऋण के रूप में वसूल होगा।

संसद् और उसके सदस्यों की शक्तियाँ, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियांशँ

संसद् के सदनों की
तथा उस के
सदस्यों और
समितियों की
शक्तियाँ, विशे-
षाधिकार आदि
१०५. (१) इस संविधान के उपबन्धों के तथा संसद् की प्रक्रिया के विनियामक नियमों और स्थायी आदेशों के अधीन रहते हुए संसद् में वाक्-स्वातन्त्र्य होगा।

(२) संसद में या उसकी किसी समिति में कही हुई किसी बात अथवा दिये हुए किसी मत के विषय में संसद् के किसी सदस्य के विरुद्ध किसी न्यायालय में कोई कार्यवाही न चल सकेगी और न किसी व्यक्ति के विरुद्ध, संसद् के किसी सदन के प्राधिकार के द्वारा या अधीन किसी प्रतिवेदन, पत्र, मतों या कार्यवाहियों के प्रकाशन के विषय में इस प्रकार की कोई कार्यवाही चल सकेगी।