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भारत का संविधान

 

भाग ५—संघ—अनु॰ १०९–११०

(३) यदि राज्य सभा की सिफारिशों में से किसी को लोक-सभा स्वीकार कर लेती है तो धन विधेयक राज्य सभा द्वारा सिपारिश किये गये तथा लोक-सभा द्वारा स्वीकृत संशोधनों सहित दोनों सदनों द्वारा पारित समझा जायेगा।

(४) यदि राज्य सभा की सिपारिशों में से किसी को भी लोक-सभा स्वीकार नहीं करती है तो धन विधेयक, राज्य सभा द्वारा सिफारिश किये गये संशोधनों में से किसी के बिना, उस रूप में दोनों सदनों द्वारा पारित समझा जायेगा जिसमें कि वह लोक-सभा द्वारा पारित किया गया था।

(५) यदि लोक-सभा द्वारा पारित तथा राज्य-सभा को उसकी सिपारिशों ये पहुँचाया गया धन विधेयक उक्त चौदह दिन की कालावधि के भीतर लोक-सभा को लौटाया नहीं जाता तो उक्त कालावधि की समाप्ति पर यह दोनों सदनों द्वारा, उस रूप में पारित समझा जायेगा जिसमें लोक-सभा ने उसको पारित किया था।

धन-विधेयकों की
परिभाषा
११० (१) इस अध्याय के प्रयोजनों के लिये कोई विधेयक धन विधेयक समझा जायेगा यदि उसमें निम्नलिखित विषयों में से सब अथवा किसी से सम्बन्ध रखने वाले उपबन्ध ही अन्तर्विष्ट हैं, अर्थात्—

(क) किसी कर का आरोपण, उत्सादन, परिहार, बदलना या विनियमन;
(ख) भारत सरकार द्वारा धन उधार लेने का, अथवा कोई प्रत्याभूति देने का विनियमन अथवा भारत सरकार द्वारा लिये गये अथवा लिये जाने वाले किन्हीं वित्तीय प्रभारों से सम्बद्ध विधि का संशोधन;
(ग) भारत की संचित निधि अथवा आकस्मिकतानिधि की अभिरक्षा, ऐसी किसी निधि में धन डालना अथवा उसमें से धन निकालना;
(घ) भारत की संचित निधि में से धन का विनियोग;
(ङ) किसी व्यय को भारत की संचित निधि पर भारित व्यय घोषित करना अथवा ऐसे किसी व्यय की राशि को बढ़ाना;
(च) भारत की संचित निधि के या भारत के लोक-लेखे के मध्ये धन प्राप्त करना अथवा ऐसे धन की अभिरक्षा या निकासी करना अथवा संघ या राज्य के लेखाओं का लेखा-परीक्षण; अथवा
(छ) उपखंड (क) से (च) तक में उल्लिखित विषयों में से किसी का आनुषंगिक कोई विषय।

(२) कोई विधेयक केवल इस कारण से धन विधेयक न समझा जायेगा कि वह जुर्मानों या अन्य अर्थ-दण्डों के आरोपण का अथवा अनुज्ञप्तियों के लिये फीसों की, अथवा की हुई सेवाओं के लिये फीसों की, अभियाचना का या देने का, उपबन्ध करता है, अथवा इस कारण से कि वह किसी स्थानीय प्राधिकारी या निकाय द्वारा स्थानीय प्रयोजनों के लिये किसी कर के आरोपण, उत्सादन, परिहार, बदलने या विनियमन का उपबन्ध करता है।

(३) यदि यह प्रश्न उठता है कि कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं तो उस पर लोक सभा के अध्यक्ष का विनिश्चय अन्तिम होगा।

9—1 Law/57