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भारत का संविधान

 

भाग ५—संघ—अनु॰ ११४–११६

(३) अनुच्छेद ११५ और ११६ के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, भारत की संचित निधि में से इस अनुच्छेद के उपबन्धों के अनुसार पारित विधि द्वारा किये गये विनियोग के अधीन निकालने के अतिरिक्त और कोई धन निकाला न जायेगा। अनुपरक, अपर या
अधिकाई अनुदान

११५. (१) यदि—

(क) अनुच्छेद ११४ के उपबन्धों के अनुसार निर्मित किसी विधि द्वारा किसी विशेष सेवा पर चालू वित्तीय वर्ष के लिये व्यय किये जाने के लिये प्राधिकृत कोई राशि उस वर्ष के प्रयोजनों के लिये अपर्याप्त पाई जाती है अथवा जब उस वर्ष के वार्षिक वित्त-विवरण में अपेक्षित न की गई किसी नई सेवा पर अनुपूरक अथवा अपर व्यय की चालू वित्तीय वर्ष में आवश्यकता पैदा हो गई है, अथवा
(ख) किसी वित्तीय वर्ष में किसी सेवा पर, उस सेवा और उस वर्ष के लिये अनुदान की गई राशि से अधिक कोई धन व्यय हो गया है,

तो राष्ट्रपति यथास्थिति संसद के दोनों सदनों के समक्ष उस व्यय की प्राक्कलित की गई राशि को दिखाने वाला दूसरा विवरण रखवायेगा अथवा लोक-सभा में ऐसी अधिकाई के लिये मांग उपस्थित करायेगा।

(२) ऐसे किसी विवरण और व्यय या मांग के संबंध में, तथा भारत की संचित निधि में से ऐसे व्यय अथवा ऐसी मांग के बारे में, अनुदान की पूर्ति के लिये धनों का विनियोग प्राधिकृत करने के लिये बनाई जाने वाली किसी विधि के संबंध में भी, अनुच्छेद ११२, ११३ और ११४ के उपबन्ध वैसे ही प्रभावी होंगे जैसे कि वे वार्षिक वित्त विवरण तथा उस में वर्णित व्यय अथवा अनुदान की किसी मांग तथा भारत की संचित निधि में से ऐसे किसी व्यय या मांग से संबंधित अनुदान की पूर्ति के लिये धनों का विनियोग प्राधिकृत करने के लिये बनाई जाने वाली विधि के संबंध में प्रभावी हैं।

लेखानुदान, प्रत्यया-
नुदान और अप-
वादानुदान
११६. (१) इस अध्याय के पूर्वगामी उपबन्धों में किसी बात के होते हुए भी लोक-सभा को—

(क) किसी वित्तीय वर्ष के भाग के लिये प्राक्कलित व्यय के बारे में किसी अनुदान को, ऐसे अनुदान के लिये मतदान करने के लिये अनुच्छेद ११३ में विहित प्रक्रिया की पूर्ति के लम्बित रहने तक, तथा उस व्यय के संबंध में अनुच्छेद ११४ के उपबन्धों के अनुसार विधि के पारण के लम्बित रहने तक, पेशगी देने की,
(ख) जब कि किसी सेवा की महत्ता या अनिश्चित रूप के कारण की गई मांग वैसे ब्योरे के साथ वर्णित नहीं की जा सकती जैसा कि वार्षिक-वित्त विवरण में साधारणतया दिया जाता है तब भारत के सम्पत्ति स्त्रोतों पर अप्रत्याशित मांग की पूर्ति के लिये अनुदान करने की,
(ग) किसी वित्तीय वर्ष की चालू सेवा का जो अनुदान भाग न हो ऐसा कोई अपवादानुदान करने की,

शक्ति होगी तथा उक्त अनुदान जिन प्रयोजनों के लिये किये गये हैं उन के लिये भारत की संचित निधि में से धन निकालना विधि द्वारा प्राधिकृत करने की शक्ति संसद् को होगी।