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भारत का संविधान

 

भाग ५—संघ—अनु॰ ११६—११८

(२) खंड (१) के अधीन किये जाने वाले किसी अनुदान तथा उस खंड के अधीन बनाई जाने वाली किसी विधि के संबंध में अनुच्छेद ११३ और ११४ के उपबन्ध वैसे ही प्रभावी होंगे जैसे कि ये वार्षिक वित्त विवरण में वर्णित किसी व्यय के बारे में किसी अनुदान के करने के तथा भारत की संचित निधि में से ऐसे व्यय की पूर्ति के लिये धनों का विनियोग प्राधिकृत करने के लिये बनाई जाने वाली विधि के संबंध में प्रभावी हैं।

वित्त-विधेयकों के
लिये विशेष
उपबन्ध

११७ (१) अनुच्छेद ११० के खंड (१) के (क) से (च) तक के उपखंडों में उल्लिखित विषयों में से किसी के करने वाला विधेयक या संशोधन लिये विशेष राष्ट्रपति की सिफारिश के बिना पुरःस्थापित या प्रस्तावित न किया जायेगा तथा ऐसे उपबन्ध करने वाला विधेयक राज्य-सभा में पुरःस्थापित न किया जायेगा;

परन्तु किसी कर के घटाने या उत्सादन के लिये उपबन्ध बनाने वाले किसी संशोधन के प्रस्ताव के लिये इस खंड के अधीन किसी सिपारिश की अपेक्षा न होगी।

(२) कोई विधेयक या संशोधन उक्त विषयों में से किसी के लिये उपबन्ध करने वाला केवल इस कारण से न समझा जायेगा कि वह जुर्मानों या अन्य अर्थ-दण्डों के आरोपण का, अथवा अनुज्ञप्तियों के लिये फीसों की, अथवा की हुई सेवाओं के लिये फीसों की, अभियाचना का या देने का उपबन्ध करता है, अथवा इस कारण से कि वह किसी स्थानीय प्राधिकारी या निकाय द्वारा स्थानीय प्रयोजनों के लिये किसी कर के आरोपण, उत्सादन, परिहार, बदलने या विनियमन का उपबन्ध करता है।

(३) जिस विधेयक के अधिनियमित किये जाने और प्रवर्तन में लाये जाने पर भारत की संचित निधि से व्यय करना पड़ेगा वह विधेयक संसद् के किसी सदन द्वारा तब तक पारित न किया जायेगा जब तक कि ऐसे विधेयक पर विचार करने के लिये उस सदन से राष्ट्रपति ने सिफारिश न की हो।

साधारणतया प्रक्रिया

प्रक्रिया के नियम

११८. (१) इस संविधान के उपबन्धों के अधीन रहते हुए संसद् का प्रत्येक सदन अपनी प्रक्रिया के, तथा अपने कार्य संचालन के विनियमन के लिये नियम बना सकेगा।

(२) जब तक खंड (१) के अधीन नियम नहीं बनाये जाते तब तक इस संविधान के प्रारम्भ से ठीक पहिले भारत डोमीनियन के विधान-मंडल के बारे में जो प्रक्रिया के नियम और स्थायी आदेश प्रवृत्त थे वे ऐसे रूपभेदों और अनुकूलनों के साथ, जिन्हें, यथास्थिति, राज्य सभा का सभापति या लोक-सभा का अध्यक्ष करे, संसद् के संबंध में प्रभावी होंगे।

(३) राज्य-सभा के सभापति और लोक-सभा के अध्यक्ष से परामर्श करने के पश्चात् राष्ट्रपति दोनों सदनों की संयुक्त बैठकों सम्बन्धी, तथा उन में परस्पर संचार सम्बन्धी, प्रक्रिया के नियम बना सकेगा।

(४) दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में लोक-सभा का अध्यक्ष अथवा उसकी अनुपस्थिति में ऐसा व्यक्ति पीठासीन होगा जिसका खंड (३) के अधीन बनाई गई प्रक्रिया के नियमों के अनुसार निर्धारण हो।