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भारत का संविधान

 

भाग ५—संघ—अनु॰ ११९—१२३

संसद् में वित्तीय
कार्य सम्बन्धी
प्रक्रिया का विधि
द्वारा विनियमन
११९. वित्तीय कार्य को समय के अन्दर समाप्त करने के प्रयोजन से संसद् विधि द्वारा, किसी वित्तीय विषय से, अथवा भारत की संचित निधि में से धन का विनियोग करने वाले किसी विधेयक से सम्बन्धित संसद् के प्रत्येक सदन की प्रक्रिया और कार्य संचालन का विनियमन कर सकेगी, तथा यदि, और जहाँ तक, इस प्रकार बनाई हुई किसी विधि का उपबन्ध अनुच्छेद ११८ के खंड (१) के अधीन संसद् के किसी सदन द्वारा बनाये गये नियम से, अथवा उस अनुच्छेद के खंड (२) के अधीन संसद् के सम्बन्ध में प्रभावी किसी नियम या स्थायी आदेश से, असंगत है तो, ऐसा उपबन्ध अभिभावी होगा।

संसद् में प्रयोग
होने वाली भाषा
१२०. (१) भाग (१७) में किसी बात के होते हुए भी, किन्तु अनुच्छेद ३४८ के उपबन्धों के अधीन रहते हुए संसद् में कार्य हिन्दी में या अंग्रेजी में किया जायेगा :

परन्तु यथास्थिति राज्य सभा का सभापति या लोक सभा का अध्यक्ष अथवा ऐसे रूप में कार्य करने वाला व्यक्ति किसी सदस्य को, जो हिन्दी या अंग्रेजी में अपनी पर्याप्त अभिव्यक्ति नहीं कर सकता, अपनी मातृभाषा में सदन को सम्बोधित करने की अनुज्ञा दे सकेगा।

(२) जब तक संसद् विधि द्वारा अन्यथा उपबन्ध न करे तब तक इस संविधान के प्रारम्भ से पंद्रह वर्ष की कालावधि की समाप्ति के पश्चात् यह अनुच्छेद ऐसे प्रभावी होगा मानो कि "या अंग्रेजी में" ये शब्द उस में से लुप्त कर दिये गये हैं।

संसद् में चर्चा पर
निर्बन्धन
१२१. उच्चतमन्यायालय या उच्चन्यायालय के किसी न्यायाधीश को आगे उपबन्धित रीति से हटाने की प्रार्थना करने वाले समावेदन को राष्ट्रपति के समक्ष रखने के प्रस्ताव पर चर्चा के अतिरिक्त कोई और चर्चा संसद् में ऐसे किसी न्यायाधीश के अपने कर्त्तव्य पालन में किये गये आचरण के विषय में न होगी।

न्यायालय संसद्
की कार्यवाहियों
की जाँच न करेंगे
१२२. (१) प्रक्रिया में किसी कथित अनियमिता के आधार पर संसद् की किसी कार्यवाही की मान्यता पर कोई आपत्ति न की जायेगी।

(२) संसद् का कोई पदाधिकारी या सदस्य, जिस में इस संविधान के द्वारा या अधीन संसद् में प्रक्रिया को, या कार्यसंचालन को विनियमन करने की, अथवा व्यवस्था रखने की, शक्तियाँ निहित हैं, उन शक्तियों के अपने द्वारा किये गये प्रयोग के विषय में किसी न्यायालय के क्षेत्राधिकार के अधीन न होगा।

अध्याय ३.—राष्ट्रपति की विधायिनी शक्तियाँ

संसद् के विश्रान्ति-
काल में राष्ट्रपति
की अध्यादेश
प्रख्यापन-शक्ति
१२३. (१) उस समय को छोड़ कर जब कि संसद् के दोनों सदन सत्त में हैं यदि किसी समय राष्ट्रपति का समाधान हो जाये कि तुरन्त कार्यवाही करने के लिये उसे बाधित करने वाली परिस्थितियाँ वर्तमान हैं तो वह ऐसे अध्यादेशों का प्रख्यापन कर सकेगा जो उसे परिस्थितियों से अपेक्षित प्रतीत हों।

(२) इस अनुच्छेद के अधीन प्रख्यापित अध्यादेश का वही बल और प्रभाव होगा जो संसद् के अधिनियम का होता है, किन्तु प्रत्येक ऐसा अध्यादेश—

(क) संसद् के दोनों सदनों के समक्ष रखा जायेगा, तथा संसद् के पुनः समवेत होने से छः सप्ताह की समाप्ति पर, अथवा, यदि उस कालावधि की समाप्ति से पूर्व दोनों सदन उस के निरनुमोदन के संकल्प पार कर देते हैं तो, इनमें से दूसरे संकल्प के पारण होने पर, प्रवर्तन में न रहेगा; तथा