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भारत का संविधान

 

भाग ५—संघ—अनु॰ १२३-१२४

(ख) राष्ट्रपति द्वारा किसी समय लौटा लिया जा सकेगा।

व्याख्या—जब संसद् के सदन भिन्न भिन्न तारीखों में पुनः समवेत होने के लिये आहूत किये जाते हैं तो इस खंड के प्रयोजनों के लिये छः सप्ताह की कालावधि की गणना उन तारीखों में से पिछली तारीख से की जायेगी।

(३) यदि, और जिस मात्रा तक, इस अनुच्छेद के अधीन अध्यादेश कोई ऐसा उपबन्ध करता है जिसे अधिनियमित करने के लिये संसद् इस संविधान के अधीन सक्षम नहीं है तो वह शून्य होगा।

अध्याय ४.—संघ को न्यायपालिका

उच्चतमन्यायालय
की स्थापना और
गठन
१२४. (१) भारत का एक उच्चतमन्यायालय होगा जो भारत के मुख्य न्यायाधिपति तथा, जब तक संसद् विधि द्वारा और अधिक संख्या निर्धारण नहीं करती तब तक, अन्य सात से अनधिक न्यायाधीशों से मिल कर बनेगा।

(२) उच्चतमन्यायालय के, तथा राज्यों के उच्चन्यायालयों के, ऐसे न्यायाधीशों से परामर्श करके, जिन से कि इस प्रयोजन के लिये परामर्श करना राष्ट्रपति आवश्यक समझे, राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा उच्चतमन्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश को नियुक्त करेगा तथा वह न्यायाधीश तब तक पद धारण करेगा जब तक कि वह पैंसठ वर्ष की आयु प्राप्त न कर ले :

परन्तु मुख्य न्यायाधिपति से भिन्न किसी अन्य न्यायाधीश की नियुक्ति के विषय में भारत के मुख्य न्यायाधिपति से सर्वदा परामर्श किया जायेगा :

परन्तु यह और भी कि—

(क) कोई न्यायाधीश राष्ट्रपति को सम्बोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपने पद को त्याग सकेगा;
(ख) खंड (४) में उपबन्धित रीति से कोई न्यायाधीश अपने पद से हटाया जा सकेगा।

(३) उच्चतमन्यायालय के न्यायधीश के रूप में नियुक्ति के लिये कोई व्यक्ति तब तक अर्ह न होगा जब तक कि वह भारत का नागरिक न हो तथा—

(क) किसी उच्चन्यायालय का अथवा ऐसे दो या अधिक न्यायालयों का लगातार कम से कम पाँच वर्ष तक न्यायाधीश न रह चुका हो; अथवा
(ख) किसी उच्चन्यायालय का, अथवा दो या अधिक न्यायालयों का लगातार कम से कम दस वर्ष तक अधिवक्ता न रह चुका हो; अथवा
(ग) राष्ट्रपति की राय में पारंगत विधिवेत्ता न हो।

व्याख्या १—इस खंड में "उच्चन्यायालय" से वह उच्चन्यायालय अभिप्रेत है वो भारत राज्य-क्षेत्र के किसी भाग में क्षेत्राधिकार का प्रयोग करता है अथवा इस संविधान के प्रारम्भ से पहिले किसी समय भी, प्रयोग करता था।