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भारत का संविधान

 

भाग ५—संघ—अनु॰ १२४–१२७

व्याख्या २.—इस खंड के प्रयोजन के लिये किसी व्यक्ति के अधिवक्ता रहने की कालावधि की संगणना में वह कालावधि भी अन्तर्गत होगी जिस में कि उस व्यक्ति अधिवक्ता होने के पश्चात् ऐसे न्यायिक पद को, जो जिला-न्यायाधीश के पद से छोटा नहीं है, धारण किया हो।

(४) उच्चतमन्यायालय का कोई न्यायाधीश अपने पद से तब तक हटाया न जायेगा जब तक कि सिद्ध कदाचार अथवा असमर्थता के लिये ऐसे हटाये जाने के हेतु प्रत्येक सदन की समस्त सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा, तथा उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों में से कम से कम दो तिहाई के बहुमत द्वारा समर्थित समावेदन के राष्ट्रपति के समक्ष संसद् के प्रत्येक सदन द्वारा उसी सत्त में रखे जाने पर राष्ट्रपति ने प्रदेश न दिया हो।

(५) खंड (४) के अधीन किसी समावेदन के रखे जाने की, तथा न्यायाधीश कदाचार या असमर्थता के अनुसंधान तथा सिद्ध करने की प्रक्रिया का संसद् विधि द्वारा विनियमन कर सकेगी।

(६) उच्चतमन्यायालय के न्यायाधीश होने के लिये नियुक्त प्रत्येक व्यक्ति अपने पद ग्रहण करने से पूर्व, राष्ट्रपति के अथवा उस के द्वारा उस लिये नियुक्त किसी व्यक्ति के समक्ष तृतीय अनुसूची में इस प्रयोजन के लिये दिये हुए प्रपत्र के अनुसार शपथ या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर हस्ताक्षर करेगा।

(७) कोई व्यक्ति, जो उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पद धारण कर चुका है, भारत राज्य-क्षेत्र के भीतर किसी न्यायालय अथवा किसी प्राधिकारी के समक्ष वकालत या कार्य न करेगा।

न्यायाधीशों के वेतन
आदि

१२५. (१) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को ऐसे वेतन दिये जायेंगे जैसे कि द्वितीय अनुसूची में उल्लिखित हैं।

(२) प्रत्येक न्यायाधीश को ऐसे विशेषाधिकारों और भत्तों का, तथा अनुपस्थिति छुट्टी और निवृत्ति वेतन के बारे में ऐसे अधिकारों का, जैसे कि संसद्-निर्मित विधि के द्वारा या अधीन समय समय पर निर्धारित किये जायें, तथा जब तक इस प्रकार निर्धारित न हों, तब तक ऐसे विशेषा-धिकारों, भत्तों, और अधिकारों का, जैसे कि द्वितीय अनुसूची में उल्लिखित हैं, हक्क होगा

परन्तु किसी न्यायाधीश के न तो विशेषाधिकारों में और न भत्तों में और न अनुपस्थिति छुट्टी या निवृत्ति वेतन विषयक उसके अधिकारों में उसकी नियुक्ति के पश्चात् उसको अलाभकारी कोई परिवर्तन किया जायेगा।

कार्यकारी मुख्य
न्यायाधिपति की
नियुक्ति

१२६. जब भारत के मुख्य न्यायाधिपति का पद रिक्त हो अथवा जब मुख्य न्यायाधिपति, अनुपस्थिति या अन्य कारण से, अपने पद के कर्तव्यों का पालन करने असमर्थ हो तब न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों में से ऐसा एक, जिसे राष्ट्रपति उस प्रयोजन के लिये नियुक्त करे, उस पद के कर्तव्यों का पालन करेगा।

तदर्थ न्यायाधीशों
की नियुक्ति

१२७. (१) यदि किसी समय उच्चतमन्यायालय के सत्त को करने या चालू रखने के लिये उस न्यायालय के न्यायाधीशों की गणपूर्ति प्राप्य न हो तो राष्ट्रपति की की नियुक्ति पूर्व सम्मति से तथा सम्बद्ध उच्चन्यायालय के मुख्य न्यायाधिपति से परामर्श करके भारत का मुख्य न्यायाधिपति किसी उच्चन्यायालय के किसी ऐसे न्यायाधीश से, जो उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश नियुक्त होने के लिये यथारीति अर्ह है तथा जिसे भारत का मुख्य न्यायाधिपति नामोद्दिष्ट करे, न्यायालय की ठकों में इतनी कालावधि के लिये, जितनी आवश्यक हो, तदर्थन्यायाधीश के रूप में उपस्थित रहने के लिये लेख द्वारा प्रार्थना कर सकेगा।