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भारत का संविधान

 

भाग ५—संघ —अनु॰ १३७–१४२

निर्णयों या आदेशों
पर उच्चतमन्या-
यालय द्वारा पुन
र्विलोकन
१३७. संसद् द्वारा बनाई गई किसी विधि के उपबन्धों के, अथवा अनुच्छेद १४५ के अधीन बनाये गये किसी नियम के अधीन रहते हुए उच्चतमन्यायालय को अपने द्वारा सुनाये गये निर्णय या दिये गये आदेश पर पुनर्विलोकन करने का अधिकार होगा।

 

उच्चतमन्यायालय
के क्षेत्राधिकार
की वृद्धि
१३८. (१) संघ-सूची के विषयों में से किसी के बारे में उच्चतमन्यायालय को ऐसे और क्षेत्राधिकार और शक्तियाँ होंगी जिसे संसद् विधि द्वारा प्रदान करे।

(२) यदि संसद् न्यायालय के लिये ऐसे क्षेत्राधिकार और शक्तियों के प्रयोग का विधि द्वारा उपबन्ध करे तो किसी विषय के बारे में उच्चतम-न्यायालय को ऐसे और क्षेत्राधिकार तथा शक्तियां होंगी जिन्हें भारत सरकार और किसी राज्य की सरकार विशेष करार द्वारा प्रदान करे।

 

कुछ लेखों के
निकालने की
शक्ति का उच्च-
तमन्यायालय को
प्रदान
[१]१३९. अनुच्छेद ३२ के खंड (२) में वर्णित प्रयोजनों से भिन्न किन्हीं प्रयोजनों के लिये ऐसे निदेश, आदेश या लेख जिनके अन्तर्गत बन्दीप्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, अधिकार-पृच्छा और उत्प्रेषण के प्रकार के लेख भी हैं, अथवा इन में से किसी को, निकालने की शक्ति संसद् विधि द्वारा उच्चतमन्यायालय को प्रदान कर सकेगी।

 

उच्चतमन्यायालय
की सहायक शक्तियाँ
१४०. ऐसी अनुपूरक शक्तियों को, जो इस संविधान के उपबन्धों में से किसी से असंगत न हों, संसद् विधि द्वारा उच्चतमन्यायालय को प्रदान करने के लिये उपबन्ध कर सकेगी, जैसी कि उस न्यायालय को इस संविधान के द्वारा या अधीन प्रदत्त क्षेत्राधिकार के अधिक कार्य-साधक रूप से प्रयोग करने के योग्य बनाने के लिये आवश्यक या वांछनीय प्रतीत हों।

 

उच्चतमन्यायालय
द्वार घोषित
विधि सब न्याया-
लयों को बन्धन-
कारी होगी
१४१. उच्चतमन्यायालय द्वारा घोषित विधि भारत राज्य क्षेत्र के भीतर सब न्यायालयों को बन्धनकारी होगी।

 

उच्चतमन्यायालय
की आज्ञाप्तियों
और आदेशों का,
प्रवृत्त कराना तथा
प्रकटन आदि के
आदेश
१४२. (१) अपने क्षेत्राधिकार के प्रयोग में उच्चतमन्यायालय ऐसी आज्ञप्ति या ऐसा आदेश दे सकेगा जैसा कि उसके समक्ष लम्बित किसी वाद या विषय में पूर्ण न्याय करने के लिये आवश्यक हो तथा इस प्रकार दी हुई आज्ञप्ति या आदेश भारत राज्य क्षेत्र में सर्वत्र ऐसी रीति से, जैसी कि संसद् किसी विधि के द्वारा या अधीन विहित करे, तथा, जब तक उस लिये उपबन्ध नहीं किया जाता तब तक, ऐसी रीति से, जसी कि राष्ट्रपति[२] आदेश द्वारा विहित करे, प्रवर्तनीय होगा।

(२) संसद् द्वारा इस बारे में बनाई हुई किसी विधि के उपबन्धों के अधीन रहते हुए उच्चतम न्यायालय को भारत के समस्त राज्य क्षेत्र के बारे में किसी व्यक्ति को हाजिर कराने के, किन्हीं दस्तावेजों को प्रकट या पेश कराने के, अथवा अपने किसी अवमान का अनुसंधान कराने या दंड देने के प्रयोजन के लिये कोई आदेश देने की समस्त और प्रत्येक शक्ति होगी।


  1. अनुच्छेद १३९ जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू न होगा।
  2. विधि मंत्रालय अधिसूचना संख्या सी॰ ओ॰ ४७, तारीख १४ जनवरी, १९५०, के साथ भारत सरकार के असाधारण गजट अनुभाग ३, पृष्ठ ७५ में प्रकाशित उच्चतम न्यायालय (आज्ञप्तियाँ और आदेश) प्रवर्तन आदेश १९५४ देखिये।