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भारत का संविधान

 

भाग ५—संघ—अनु॰ १४५-१४६

(छ) जामिन की मंजूरी के बारे में नियम,
(ज) कार्यवाहियों के रोकने के बारे में नियम,
(झ) ऐसी अपील जो उस न्यायालय को तुच्छ या तंग करने वाली अथवा विलम्ब करने के प्रयोजन से की हुई प्रतीत होती है उसके संक्षेपतः निर्धारण के लिये उपबन्ध करने वाले नियम,
(ञ) अनुच्छेद ३१७ के खंड (१) में निर्दिष्ट जाँचों के लिये प्रक्रिया के बारे में नियम, भी हैं।

(२) खंड (३) के उपबन्धों के अधीन रहते हुए इस अनुच्छेद के अधीन बने नियम, उन न्यायाधीशों की न्यूनतम संख्या नियत कर सकेंगे जो किसी प्रयोजन के लिये बैठेंगे तथा, अकेले न्यायाधीशों और खंड-न्यायालयों की शक्ति के लिये उपबन्ध कर सकेंगे।

(३) इस संविधान के निर्वचन का कोई सारवान् विधि प्रश्न जिस मामले में अन्तर्ग्रस्त है उसका विनिश्चय करने के प्रयोजन के लिये, अथवा इस संविधान के अनुच्छेद १४३ के अधीन सौंपे गये प्रश्न सुनने के प्रयोजन के लिये बैठने वाले न्यायाधीशों की न्यूनतम संख्या पाँच होगी :

परन्तु जहाँ इस अध्याय में के अनुच्छेद १३२ से भिन्न उपबन्धों के अधीन अपील सुनने वाला न्यायालय पाँच न्यायधीशों से कम से मिल कर बना है तथा अपील सुनने के दौरान में उस न्यायालय का समाधान हो जाता है कि अपील में संविधान के निर्वाचन का ऐसा सारवान विधि-प्रश्न अन्तर्ग्रस्त है जिसका निर्धारण अपील के निबटारे के लिये आवश्यक है, वहाँ वह न्यायालय ऐसे प्रश्न को उस न्यायालय को, जो ऐसे प्रश्न को अन्तर्ग्रस्त रखने वाले किसी मामले के विनिश्चय के लिये इस खंड द्वारा अपेक्षित रूप में गठित किया जाये, उसकी राय के लिये सौंपेगा तथा राय की प्राप्ति पर उस अपील को वैसी राय के अनुसार निबटायेगा।

(४) उच्चतम न्यायालय कोई निर्णय खुले न्यायालय में के सिवाय नहीं सुनायेगा तथा अनुच्छेद १४३ के अधीन कोई प्रतिवेदन खुले न्यायालय में ही सुनाई गई राय से अन्यथा न दिया जायेगा;

(५) कोई निर्णय और ऐसी कोई राय उच्चतम न्यायालय द्वारा मामले की सुनवाई में उपस्थित न्यायाधीशों में के बहुसंख्यक की सहमति से अन्यथा, न दी जायेगी किन्तु इस खंड की कोई बात सहमत न होने वाले किसी न्यायाधीश को अपने विमत-निर्णय या राय देने से न रोकेगी।

उच्चतमन्य
के पदाधिकारी
और सेवक तथा
व्यय
१४६. (१) उच्चतमन्यायालय के पदाधिकारियों और सेवकों की नियुक्तियाँ भारत का मुख्य न्यायाधिपति अथवा उसके द्वारा निर्देशित उस न्यायालय का अन्य न्यायाधीश या पदाधिकारी करेगा :

 

परन्तु राष्ट्रपति नियम द्वारा यह अपेक्षा कर सकेगा कि ऐसी किन्हीं अवस्थाओं में, जैसी कि नियम में उल्लिखित हों, किसी ऐसे व्यक्ति को, जो पहिले ही न्यायालय में लगा हुआ नहीं है, न्यायालय से संसक्त किसी पद पर, संघ लोक सेवा प्रयोग से परामर्श किये बिना, नियुक्त न किया जायेगा।