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भारत का संविधान

भाग ६—राज्य—अनु॰ १९८—१९९

(३) यदि विधान-परिषद् की सिपारिशों में से किसी को विधान-सभा स्वीकार कर लेती है तो धन-विधेयक विधान-परिषद् द्वारा सिपारिश किये गये तथा विधान-सभा द्वारा स्वीकृत संशोधनों सहित दोनों सदनों द्वारा पारित समझा जायेगा

(४) यदि विधान-परिषद् की सिफारिशों में से किसी को भी विधान-सभा स्वीकार नहीं करती है तो धन-विधेयक, विधान-परिषद् द्वारा सिपारिश किये गये किसी संशोधन के बिना, उस रूप में दोनों सदनों द्वारा पारित समझा जायेगा जिसमें कि वह विधान-सभा द्वारा पारित समझा गया था।

(५) यदि विधान-सभा द्वारा पारित तथा विधान-परिषद् को उसकी सिपारिशों के लिये पहुंचाया गया धन-विधेयक उक्त चौदह दिन की कालावधि के भीतर विधान-सभा को लौटाया नहीं जाता तो उक्त कालावधि की समाप्ति पर वह दोनों सदनों द्वारा उस रूप में पारित समझा जायेगा जिस में विधान सभा ने उसको पारित किया था।

धन-विधेयकों की
परिभाषा
१९९. (१) इस अध्याय के प्रयोजनों के लिये कोई विधेयक धन-विधेयक समझा जायेगा यदि उसमें निम्नलिखित विषयों में से सब अथवा किसी से सम्बन्ध रखने वाले उपबन्ध ही अन्तर्विष्ट हैं, अर्थात्—

(क) किसी कर का आरोपण, उत्सादन, परिहार बदलना या विनियमन;
(ख) राज्य द्वारा धन उधार लेने का, अथवा कोई प्रत्याभूति देने का विनियमन, अथवा राज्य द्वारा लिये गये अथवा लिये जाने वाले किन्हीं वित्तीय आभारों से सम्बद्ध विधि का संशोधन;
(ग) राज्य की संचित् निधि अथवा आकस्मिकता निधि की अभिरक्षा, ऐसी किसी निधि में धन डालना अथवा उसमें से धन निकालना;
(घ) राज्य की संचित निधि में से धन का विनियोग;
(ङ) किसी व्यय को राज्य की संचित निधि पर भारित व्यय घोषित करना अथवा ऐसे किसी व्यय की राशि को बढ़ाना;
(च) राज्य की संचित निधि के या राज्य के लोक लेखे मध्ये धन प्राप्त करना अथवा ऐसे धन की अभिरक्षा या निकासी करना; अथवा
(छ) उपखंड (क) से (च) तक में उल्लिखित विषयों में से किसी का आनुषंगिक कोई विषय।

(२) कोई विधेयक केवल इस कारण से धन-विधेयक न समझा जायेगा कि वह जुर्मानों या अन्य अर्थ-दंडों के आरोपण का, अथवा अनुज्ञप्तियों के लिये फीसों की, या की हुई सेवाओं के लिए फीसों की अभियाचना का या देने का उपबन्ध करता है अथवा, इस कारण से कि वह किसी स्थानीय प्राधिकारी या निकाय द्वारा स्थानीय प्रयोजनों के लिये किसी कर के आरोपण, उत्सादन, परिहार बदलने या विनियमन का उपबन्ध करता है।

(३) यदि यह प्रश्न उठता है कि विधान-परिषद् वाले किसी राज्य के विधानमंडल में पुरःस्थापित कोई विधेयक धन-विधेयक है या नहीं तो उस पर उस राज्य की विधान-सभा के अध्यक्ष का विनिश्चय अन्तिम होगा।