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भारत का संविधान


भाग ६—राज्य—अनु॰ २१७—२२१

(ख) उस कालावधि की संगणना के अंतर्गत, जिसमें कि कोई व्यक्ति भारत राज्य-क्षेत्र में न्यायिक पद धारण कर चुका है अथवा किसी उच्चन्यायालय का अधिवक्ता रह चुका है इस संविधान के प्रारम्भ से पूर्व की वह कोई कालावधि भी होगी जिसमें उसने किसी क्षेत्र में, जो १५ अगस्त, १९४७ से पूर्व, भारत शासन-अधिनियम, १९३५ में परिभाषित भारत में समाविष्ट था, यथास्थिति न्यायिक पद धारण किया हो अथवा ऐसे किसी क्षेत्र के किसी उच्चन्यायालय का अधिवक्ता रह चुका हो।

उच्चतमन्यायालय
सम्बन्धी कुछ
उपबन्धों का
उच्चन्यायालयों को
लागू होना
२१८. अनुच्छेद १२४ के खंड (४) और (५) के उपबन्ध जहां जहां उनमें उच्चतमन्यायालय के निर्देश हैं वहां वहां उच्चन्यायालय के निर्देश रख कर, उच्चन्यायालय के सम्बन्ध में वैसे ही लागू होंगे जैसे कि वे उच्चतमन्यायालय के सम्बन्ध में लागू है।

 

उच्चन्यायालयों के
न्यायाधीशों द्वारा
शपथ या प्रतिज्ञान
२१९. [१]* * * उच्चन्यायालय के न्यायाधीश होने के लिये नियुक्त प्रत्येक व्यक्ति, अपने पद ग्रहण करने के पूर्व उस राज्य के राज्यपाल के, अथवा उसके द्वारा उस लिये नियुक्त किसी व्यक्ति के, समक्ष तृतीय अनुसूची में इस प्रयोजन के लिये दिये हुए प्रपत्र के अनुसार शपथ या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर हस्ताक्षर करेगा।

स्थायी न्यायाधीश
रहने के पश्चात
विधि वृत्ति पर
निर्बन्धन
२२०. [२][कोई व्यक्ति जो इस संविधान के प्रारम्भ के बाद उच्चन्यायालय के स्थायी न्यायाधीश का पद धारण कर चुका है, उच्चतमन्यायालय या अन्य उच्चन्यायालयों के सिवाय भारत के किसी न्यायालय अथवा किसी प्राधिकारी के समक्ष वकालत या कार्य न करेगा।

व्याख्या—इस अनुच्छेद में "उच्च न्यायालय" पदावलि के अन्तर्गत संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६ के [३]प्रारम्भ से पूर्व यथा वर्तमान प्रथम अनुसूची के भाग (ख) में उल्लिखित राज्य के लिए उच्च न्यायालय नहीं है।]

न्यायाधीशों के
वेतन इत्यादि
२२१. (१) प्रत्येक उच्चन्यायालय के न्यायाधीशों को ऐसे वेतन दिये जायेंगे जैसे कि द्वितीय अनुसूची में उल्लिखित हैं।

(२) प्रत्येक न्यायाधीश को ऐसे भत्तों का तथा अनुपस्थिति-छुट्टी के और निवृत्ति-वेतन के बारे में से अधिकारों का, जैसे कि संसद्-निर्मित विधि के द्वारा या अधीन समय समय पर निर्धारित किये जायें तथा जब तक इस प्रकार निर्धारित न हों तब तक ऐसे भत्तों और अधिकारों का, जैसे द्वितीय अनुसूची में उल्लिखित हैं हक्क होगा :

परन्तु किसी न्यायाधीश के न तो भत्ते और न उसकी अनुपस्थिति-छुट्टी या निवृत्ति-वेतन विषयक उसके अधिकारों में उसकी नियुक्ति के पश्चात् उसको अलाभकारी कोई परिवर्तन किया जायेगा।


  1. "किसी राज्य के" शब्द संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम १९५६, धारा २९ और अनुसूची द्वारा लुप्त कर दिये गये।
  2. संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा १३ और अनुसूची द्वारा मूल अनुच्छेद २२० के स्थान पर रखा गया।
  3. १ नवम्बर, १९५६