भाग १२-वित्त, सम्पत्ति, संविदाएं और व्यवहार-बाद--अनु० २८३-२८६
(२)राज्य की संचित निधि और राज्य की आकस्मिकता-निधि की अभि-रक्षा ऐसी निधियों में धन का डालना, उनसे धन का निकालना, ऐसी निधियों में जमा किये धन से अतिरिक्त राज्य की सरकार द्वारा या उसकी ओर से प्राप्त लोक-धन की अभिरक्षा उनका राज्य के लोक लेख में दिया जाना तथा ऐसे लेखे मे धन का निकालना तथा उपर्युक्त विषयों से संसक्त या महायक अन्य सब विषयों का विनियमन राज्य के विधान-मंडल द्वारा निर्मित विधि से होगा तथा जब तक उस लिये उपबन्ध इस प्रकार नहीं किया जाये तब तक राज्य के राज्यपाल ** द्वारा निर्मित नियमों से होगा।
२८४.यथास्थिति भारत के लोक-लेख में या राज्य के लोक-लेखों में लोक-सेवकों और न्यायालयों द्वारालोक सेवकों और
न्यायलयों द्वारा
प्राप्त वादियों के
निक्षेप और अन्य
धन्य की अभि-
रक्षा
प्राप्त या निक्षिप्त सब धन डाले जायेंगे।
२८५.(१) जहां तक कि संसद् विधि द्वारा अन्यथा उपबन्धन को वहां तक किसी राज्य द्वारा, अयवा राज्य के अन्तर्गत किमी प्राधिकारी द्वारा, यारोपित की राज्य के मव करों से संघ की सम्पत्ति विमुक्त होगी।संघ की संपति
की राज्य के
करों से विमुक्ति
(२) जब तक संसद विधि द्वाग अन्यथा उपबन्ध न करे तब तक खंड (१)की कोई बात किसी राज्य के अन्तर्गत किमी प्राधिकारी को संघ की किसी सम्पत्ति पर कोई ऐसा कर उद्गहीत करने में बाधा नहीं डालेगी जिस का दायित्व, इस संविधान के प्रारम्भ से ठीक पहिले, ऐमी सम्पत्ति पर था या समझा जाता था जब तक कि वह कर उस राज्य में लगा रहे।
२८६.(१) राज्य की कोई विधि, वस्तुओं के क्रय और विक्रय पर, जहां ऐसा क्रय या विक्रय--
वस्तुओं के क्रय या
विक्रय पर
करारोपण के
बारे में निर्बंध्ं
यह खंड जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू न होगा ।
"या राजप्रभु" शब्द संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २९ और अनुसूनी द्वारा लुप्त कर दिये गये।
जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू होने में 'राज्य' के प्रति निर्देशों का यह अर्थ न किया जायेगा कि वे जम्मू और कश्मीर राज्य के प्रति निर्देश है ।