पृष्ठ:भारत का संविधान (१९५७).djvu/२५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१०७
भारत का संविधाम

भाग १२-वित्त, सम्पत्ति, संविदाएं और व्यवहार-बाद>
अनु० २८८-२६०

(२) राज्य का विधानमंडल विधि द्वारा खंड (१) में वर्णित कोई कर आरोपित, या आरोपित करना प्राधिकृत कर सकेगा, किन्तु ऐसी किसी विधि का तब तक कोई प्रभाव न होगा जब तक कि उसे राष्ट्रपति के विचार के लिये रक्षित रखे जाने के पश्चात् उसकी अनुमति न मिल गई हो, तथा यदि ऐसी कोई विधि ऐसे करों की दरों और अन्य प्रासंगिक बातों को किसी प्राधिकारी द्वारा, उस विधि के अधीन बनाये जाने वाले नियमों या आदेशों के द्वारा, नियत करने का उपबन्ध करती है, तो विधि ऐसे किसी नियम या आदेश के बनाने के लिये राष्ट्रपति की पूर्व सम्मति लिये जाने का उपबन्ध करेगी।

संघ के कराधान
से राज्यों की
सम्पत्ति और
आय की विमुक्ति
२८९. (१) राज्य की सम्पत्ति और आय संघ के कराधान से विमुक्त होंगी।

 

(२) खंड (१) की किसी बात से संघ को राज्य की सरकार द्वारा, या की ओर से, किये जाने वाले किसी प्रकार के व्यापार या कारबार के बारे में, अथवा उनसे सम्बन्धित किन्हीं क्रियाओं के बारे में, अथवा उनके प्रयोजनों के लिये उपयोग में आने वाली या आधिपत्य में की गई, किसी सम्पत्ति के बारे में, अथवा उनसे प्रोद्भुत या उत्पन्न किसी आय के बारे में, किसी कर को ऐसे विस्तार तक, यदि कोई हो, जिसे कि संसद् विधि द्वारा उपबन्धित करे, आरोपित करने या आरोपित करना प्राधिकृत करने में रुकावट नहीं होगी।

(३) खंड (२) की कोई बात किसी ऐसे व्यापार या कारबार अथवा व्यापार या कारबार के किसी ऐसे प्रकार को लागू न होगी जिसे कि संसद् विधि द्वारा घोषित करे कि वह सरकार के मामूली कृत्यों से प्रासंगिक है।

कतिपय व्ययों तथा
वेतनों के विषय
में समायोजन
[१]२९०. जहां इस संविधान के उपबन्धों के अधीन किसी न्यायालय या प्रायोग के व्यय, अथवा जिस व्यक्ति ने इस संविधान के प्रारम्भ से पूर्व भारत में सम्राट के अधीन, अथवा ऐसे प्रारम्भ के पश्चात संघ के या किसी राज्य के कार्यों के सम्बन्ध में सेवा की है उसको या उसके बारे में देय निवत्ति-वेतन भारत की संचित निधि अथवा राज्यों की संचित निधि पर भारित हैं, वहां यदि—

(क) भारत की संचित निधि पर भारित होने की अवस्था में वह न्यायालय या आयोग किसी राज्य को किन्हीं पृथक आवश्यकताओं में से किसी की पूर्ति करता हो अथवा उस व्यक्ति ने राज्य के कार्यों के सम्बन्ध में पूर्णतः या अंशतः सेवा की हो, अथवा
(ख) राज्य की संचित निधि पर भारित होने की अवस्था में न्यायालय या आयोग संघ की या अन्य राज्य की पृथक् आवश्यकताओं में से किसी की पूर्ति करता हो अथवा उस व्यक्ति ने संघ या अन्य राज्य के कार्यों के सम्बन्ध में पूर्णतः या अंशत: सेवा की हो,

तो उस राज्य की संचित निधि पर अथवा यथास्थिति भारत की संचित निधि या अन्य राज्य की संचित निधि पर, व्यय विषयक या निवृत्ति-वेतन विषयक उतना अंशदान, जितना कि करार हो, अथवा करार के अभाव में उतना अंशदान, जितना कि भारत के मुख्य न्यायाधिपति द्वारा नियुक्त मध्यस्थ निर्धारित करे, भारित होगा और उस निधि से दिया जायेगा।


  1. अनुच्छेद २९० जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू न होगा।