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भारत का संविधान

भाग १२—वित्त, सम्पत्ति, संविदाएं और व्यवहार-वाद—
अनु० २६५-२६८

(ख) जो अधिकार, दायित्व और आभार प्रथम अनुसूची के भाग (ख) में उल्लिखित राज्य के तत्स्थानी किसी देशी राज्य की सरकार के थे चाहे फिर वे किसी संविदा से या अन्यथा उद्भत हए हों, वे सब ऐसे करार के अधीन रह कर जैसा कि उस बारे में भारत सरकार उस राज्य की सरकार से करे, भारत सरकार के अधिकार, दायित्व और आभार होंगे यदि जिन प्रयोजनों के लिये ऐसे प्रारम्भ से ठीक पहिले ऐसे अधिकार अर्जित किये गये थे अथवा दायित्व या आभार लिये गये थे, वे संघ-सूची में प्रगणित विषयों में से किसी से सम्बद्ध भारत सरकार के प्रयोजन हों।

(२) उपरोक्त के अधीन रह कर, प्रथम अनुसूची के भाग (ख) में उल्लिखित प्रत्येक राज्य की सरकार, उन सब सम्पत्ति और आस्तियों, तथा संविदा से या अन्यथा उदभूत सब अधिकारों, दायित्वों और आभारों के बारे में, जो खंड (१) में निर्दिष्ट से भिन्न हैं, तत्स्थानी देशी राज्य की इस संविधान के प्रारम्भ से लेकर उत्तराधिकारिणी होगी।

राजगामी, व्यपगत
या स्वामिहीनत्व
होने से प्रोदभूत
सम्पत्ति
२९६. एतत्पश्चात् उपबन्धित के अधीन रहकर यदि यह संविधान प्रवर्तन में न आया होता तो जो कोई सम्पनि भारत राज्यक्षेत्र में राजगामी या व्यपगत होने से, या अधिकारयुक्त स्वामी के अभाव में स्वामिहीन-रिक्थ के रूप में यथास्थिति सम्राट को अथवा देशी राज्य के शासक को प्रोद्भत हई होती, वह सम्पत्ति यदि राज्य में स्थित हो तो ऐसे राज्य में और किसी अन्य अवस्था में संघ में निहित होगी:

परन्तु कोई सम्पत्ति, जो उस तारीख को, जब कि वह इस प्रकार सम्राट को अथवा देशी राज्य के शासक को प्रोदभूत हई होती भारत सरकार के अथवा किसी राज्य की सरकार के कब्जे या नियंत्रण में थी, तब यदि उसका जिन प्रयोजनों के लिये उस समय उपयोग या धारण था वे प्रयोजन संघ के थे तो वह संघ में और यदि वे प्रयोजन किसी राज्य के थे तो वह उस राज्य में निहित होगी।

व्याख्या—इस अनुच्छेद में "शासक" और "देशी राज्य" पदों का वही अर्थ होगा जो अनुच्छेद ३६३ में है।

जल-प्रांगण में स्थित
मूल्यवान चीजें
संघ में निहित
होंगी
२९७. भारत के जल-प्रांगण में, समद्र के नीचे की सब भूमियां, खनिज तथा अन्य मूल्यवान चीजें संघ में निहित होंगी तथा संघ के प्रयोजनों के लिये धारण की जायेंगी।

 
 

व्यापार आदि करने
कि शक्ति
[१][२९८. संघ की और प्रत्येक राज्य की कार्यपालिका शक्ति किसी व्यापार या कारबार के करने और किसी प्रयोजन के लिये सम्पत्ति के अर्जन, धारण और व्ययन तथा संविदाकरण तक विस्तृत होगी;

परन्तु—

क) संघ की उक्त कार्यपालिका शक्ति, वहां तक जहां तक कि ऐसा व्यापार या कारबार या ऐसा प्रयोजन वह नहीं है जिसके संबंध में संसद् विधियां बना सकती है, प्रत्येक राज्य में उस राज्य द्वारा विधान के अध्यधीन होगी, और

  1. संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २० द्वारा मूल अनुच्छेद २९८ के स्थान पर रखा गया।