पृष्ठ:भारत का संविधान (१९५७).djvu/२६५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१११
भारत का संविधान

भाग १२—वित्त, सम्पत्ति, संविदाएं, और व्यवहार-वाद—
अनु० २९८-३००

(ख) प्रत्येक राज्य की उक्त कार्यपालिका शक्ति, वहां तक जहां तक कि ऐसा व्यापार या कारबार या ऐसा प्रयोजन वह नहीं है जिसके संबंध में उस राज्य का विधानमंडल विधियां बना सकता है, संसद द्वारा विधान के अध्यधीन होगी।]

संविदाएं [१]२९९. (१) संघ की, अथवा राज्य की कार्यपालिका शक्ति के प्रयोग में की गई सब संविदाएं, यथास्थिति राष्ट्रपति द्वारा अथवा उस राज्य के राज्यपाल [२]* * * द्वारा की गई कही जायेंगी तथा वे सब संविदाएं और सम्पत्ति-संबंधी हस्तान्तरण-पत्र, जो उस शक्ति के पालन में किये जायें राष्ट्रपति या राज्यपाल [२]* * * की ओर से उस के द्वारा निर्देशित या प्राधिकृत व्यक्तियों द्वाग और रीति के अनुसार लिखे जायेंगे।

(२) न तो राष्ट्रपति और न किसी राज्य का राज्यपाल [३]* * * इस संविधान के प्रयोजनों के हेतु, अथवा भारत सरकार विषयक इससे पूर्व प्रवर्तित किमी अधिनियमिति के प्रयोजनों के हेतु की गई अथवा लिखी गई किसी संविदा या हस्तान्तरण-पत्र के बारे में वैयक्तिक रूप से उत्तरदायी होगा और न वैसा कोई व्यक्ति ही इसके बारे में वैयक्तिक रूप से उत्तरदायी होगा जिसने उनमें से किसी की ओर से ऐसी संविदा या हस्तान्तरण-पत्र किया या लिखा हो।

व्यवहार-वाद और
कार्यवाहियां
३००. (१) भारत संघ के नाम से, भारत मरकार व्यवहारवाद ला सकेगी अथवा उसके विरुद्ध व्यवहार-वाद लाया जा सकेगा तथा किसी राज्य के नाम से, उस कार्यवाहियां गज्य की सरकार व्यवहार-वाद ला सकेगी अथवा उम के विरुद्ध व्यवहार-वाद लाया जा सकेगा, तथा इस संविधान मे दी हई शक्तियों के आधार पर, संसद द्वारा अथवा एसे राज्य के विधानमंडल द्वारा, जो अधिनियम बनाया जाये, उसके उपबन्धों के अधीन रहते हए वे अपने अपने कार्यों के बारे में उसी प्रकार व्यवहार-वाद ला सकेंगे, अथवा उन के विरुद्ध उमी प्रकार व्यवहारवाद लाया जा सकेगा जिस प्रकार भारत डोमीनियन और तत्स्थानी प्रान्त अथवा तत्स्थानी देशी राज्य-व्यवहार-वाद ला सकते अथवा उनके विरुद्ध व्यवहार-वाद लाया जा सकता, यदि इस संविधान को अधिनियम का रूप न दिया गया होता।

(२) यदि इस मंविधान के प्रारंभ पर—

(क) कोई ऐसी विधि-कार्यवाहियां लंबित हैं जिसम भारत डोमीनियन एक पक्ष है, तो उन कार्यवाहियों में उक्त डोमीनियम के स्थान में भारत संघ समझा जायेगा, तथा
(ख) कोई ऐसी विधि-कार्यवाहियां लंबित हैं जिनमें कोई प्रान्त या कोई देशी राज्य एक पक्ष है, तो उन कार्यवाहियों में उस प्रान्त या देशी गज्य के स्थान में तत्स्थानी राज्य समझा जायेगा।

  1. जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू होने में राज्य या राज्यों के प्रति निर्देशों का यह अर्थ न, किया जायेगा कि वे उस राज्य के प्रति निर्देश है।
  2. २.० २.१ "या राजप्रमुख" शब्द संविधान (सप्तम मंशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २६ और अनसूची द्वारा लुप्त कर दिये गये।,
  3. "या राजप्रमुख" शब्द उपरोक्त के ही द्वारा लुप्त कर दिये गये।