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भारत का संविधान

भाग १४—संघ और राज्यों के अधीन सेवाएं—
अनु॰३११-३१२

संघ या राज्य के
अधीन असैनिक
हैसियत से नौकरी
में लगे हुए
व्यक्तियों की पद-
च्युति,पद से हटाया
जाना, या पक्ति-
च्युत किया जाना
३११. (१) जो व्यक्ति संघ की असैनिक सेवा का या अखिल भारतीय सेवा का या राज्य की असैनिक सेवा का सदस्य है, अथवा संघ के या राज्य के अधीन असैनिक पद को धारण करता है, वह अपनी नियुक्ति करने वाले प्राधिकारी से निचले किसी प्राधिकारी द्वारा पदच्युत नहीं किया जायेगा अथवा पद से हटाया नहीं जायेगा।

(२) उपर्युक्त प्रकार का कोई व्यक्ति तब तक पदच्युत नहीं किया जायेगा अथवा पद से नहीं हटाया जायेगा, अथवा पंक्तिच्युत नहीं किया जायेगा. जब तक कि उस के बारे में प्रस्थापित की जाने वाली कार्यवाही के खिलाफ कारण दिखाने का युक्तियुक्त अवसर उसे न दे दिया गया हो:

परन्तु यह खंड वहां लागू न होगा—

(क) जहां कोई व्यक्ति ऐसे प्राचार के आधार पर पदच्युत किया गया या हटाया गया या पंक्तिच्युत किया गया है जिस के लिये दंड-दोषारोप पर वह सिद्धदोष हुआ है;
(ख) जहां किसी व्यक्ति को पदच्युत करने या पद से हटाने या पंक्तिच्युत करने की शक्ति रखने वाले किसी प्राधिकारी का समाधान हो जाता है कि किसी कारण से, जो उस प्राधिकारी द्वारा लेखबद्ध किया जायेगा, यह युक्तियुक्त रूप में व्यवहार्य नहीं है कि उस व्यक्ति को कारण दिखाने का अवसर दिया जाये; अथवा
(ग) जहां यथास्थिति राष्ट्रपति या राज्यपाल [१]**** का समाधान हो जाता है कि राज्य की सुरक्षा के हित में यह हटकर नहीं ह कि उस व्यक्ति को ऐसा अवसर दिया जाये।

(३) यदि कोई प्रश्न पैदा होता है कि क्या खंड (२) के अधीन किसी व्यक्ति को कारण दिखाने का अवसर देना युक्तियुक्त रूप में व्यवहार्य है या नहीं तो ऐसे व्यक्ति को यथास्थिति पदच्युत करने या पद से हटाने अथवा उसे पंक्तिच्युत करने की शक्तिवाले प्राधिकारी का उस पर विनिश्चय अंतिम होगा।

अखिल भारतीय
सेवाएं
३१२. (१) भाग ११ में किसी बात के होते हुये भी यदि राज्य-सभा ने उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों की दो तिहाई से अन्यून संख्या द्वारा समर्थित संकल्प द्वारा घोषित कर दिया है कि राष्ट्र-हित में ऐसा करना आवश्यक या इष्टकर है तो संसद् विधि द्वारा संघ और राज्यों के लिये सम्मिलित एक या अधिक अखिल भारतीय सेवाओं के सृजन के लिये उपबन्ध कर सकेगी तथा इस अध्याय के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुये किसी ऐसी सेवा के लिये भर्ती का तथा, नियुक्त व्यक्तियों की सेवा की शर्तों का, विनियमन कर सकेगी।

(२) इस संविधान के प्रारंभ पर भारत प्रशासन सेवा और भारत आरक्षी सेवा नाम से ज्ञात सेवायें इस अनुच्छेद के अधीन संसद् द्वारा सृजित सेवायें समझी जायेंगी।

अन्तर्वर्ती उपबन्ध

३१३. जब तक इस संविधान के अधीन इस लिये अन्य उपबन्ध नहीं किया जाता तब तक इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहिले सब प्रवृत्त विधियां, जो किसी ऐसी लोक-सेवा या किसी ऐसे पद को, जो इस संविधान के प्रारंभ के पश्चात् अखिल भारतीय सेवा के अथवा संघ या राज्य के अधीन सेवा या पद के रूप में बने रहते हैं, लागू हों, वहां तक प्रवृत्त बनी रहेंगी जहां तक कि वे इस संविधान के उपबन्धों से संगत हों।


  1. "या राजप्रमुख" शब्द संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २९ और अनुसूची द्वारा लुप्त कर दिये गये।