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भारत का संविधान

भाग १४—संघ और राज्यों के अधीन सेवाएं—
अनु० ३२०—३२३

(४) खंड (३) की किसी बात से यह अपेक्षा न होगी कि लोकसेवा-आयोग से उस रीति के बारे में परामर्श किया जाये जिससे कि अनुच्छेद १६ के खंड (४) में निर्दिष्ट कोई उपबन्ध बनाया जाना है अथवा जिस रीति से कि अनुच्छेद २३५ के उपबन्धों को प्रभाव दिया जाना है।

(५) खंड (३) के परन्तुक के अधीन राष्ट्रपति अथवा किसी राज्य के राज्यपाल [१]*** द्वारा बनाये गये सब विनियम उन के बनाये जाने के पश्चात् यथासंभव शीघ्र यथास्थिति संसद के प्रत्येक सदन, अथवा राज्य के विधानमंडल के सदन या प्रत्येक सदन के समक्ष चौदह दिन से अन्यून समय के लिये रखे जायेंगे, तथा निरसन या संशोधन द्वारा किये गये ऐसे रूपभेदों के अधीन होंगे जैसे कि संसद् के दोनों सदन अथवा उस राज्य के विधानमंडल का सदन या दोनों सदन उस सत्र में करें जिस में कि वे इस प्रकार रखे गये हों।

लोकसेवा-पायोगों
के कृत्योंके विस्तार
की शक्ति
३२१. यथास्थिनि संसद द्वारा निर्मित अथवा राज्य के विधानमंडल द्वारा निर्मिन कोई अधिनियम संघ-लोकसेवा-आयोग या राज्य-लोकसेवा-आयोग द्वारा संघ की या राज्य की सेवाओ के बारे में, तथा किसी स्थानीय प्राधिकारी अथवा विधि द्वारा गठित अन्य निगम-निकाय अथवा किसी सार्वजनिक संस्था की सेवाओ के बारे में भी अतिरिक्त कृत्यों के प्रयोग के लिये उपबन्ध कर सकेगा।

लोकसेवा-पायोगों के
व्यय
३२२. संध के, या राज्य के, लोकसेवा-आयोग के व्यय, जिन के अन्तर्गत आयोग के सदस्यों या कर्मचारी-वृन्द को, या के विषय में, दिये जाने वाले कोई वेतन, भत्ते और निवृत्ति-वेतन भी हैं, यथास्थिति भारत की संचित निधि या गज्य की संचित निधि पर भारित होंगे।

लोकसेवा-पायोगों के
प्रतिवेदन
३२३. (१) संघ-आयोग का कर्तव्य होगा कि राष्ट्रपति को आयोग द्वार किये गये काम के बारे में प्रतिवर्ष प्रतिवेतन दे, तथा ऐसे प्रतिवेदन के मिलने पर राष्ट्रपति उन मामलों के बारे में, यदि कोई हों, जिन में कि आयोग का परामर्श स्वीकार नहीं किया गया, ऐसी अस्वीकृति के लिये कारणों को स्पष्ट करने वाले ज्ञापन के सहित उस प्रतिवेदन की प्रतिलिपि संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवायेगा।

(2) राज्य-आयोग का कर्तव्य होगा कि राज्य के राज्यपाल [१]*** को आयोग द्वारा किये गये काम के बारे में प्रतिवर्ष प्रतिवेदन दे तथा संयुक्त आयोग का कर्तव्य होगा कि ऐसे राज्यों में से प्रत्येक के, जिन की आश्यकताओं की पूर्ति संयुक्त आयोग द्वारा की जाती है, राज्यपाल [१]*** को उस राज्य के सम्बन्ध में आयोग द्वारा किये गये काम के बारे में प्रतिवर्ष प्रतिवेदन दे तथा इन में से प्रत्येक अवस्था में ऐसे प्रतिवेदन के मिलने पर [२][राज्यपाल] उन मामलों के बारे में , यदि कोई हों, जिन में कि आयोग का परामर्श स्वीकार नहीं किया गया है, ऐसी अस्वीकृति के लिये कारणों को स्पष्ट करने वाले ज्ञापन के सहित उस प्रतिवेदन की प्रतिलिपि राज्य के विधानमंडल के समक्ष रखवायेगा।


  1. १.० १.१ १.२ "या राजप्रमुख" शब्द संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम १९५६, धारा २९ और अनुसूची द्वारा लुप्त कर दिये गये।,
  2. उपरोक्त के ही द्वारा “यथास्थिति राज्यपाल या राजप्रमुख" के स्थान पर रखा गया।