पृष्ठ:भारत का संविधान (१९५७).djvu/३०१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
१२९
भारत का संविधान

 

भाग १७––राजभाषा––अनु॰ ३४४––३४७

(घ) संघ के किसी एक या अधिक उल्लिखित प्रयोजनों के लिये प्रयोग किये जाने वाले अंकों के रूप के,
(ङ) संघ की राजभाषा तथा संघ और किसी राज्य के बीच अथवा एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच संचार की भाषा तथा उनके प्रयोग के बारे में राष्ट्रपति द्वारा आयोग से पृच्छा किये हए किसी अन्य विषय के,


बारे में सिपारिश करने का आयोग का कर्तव्य होगा।

(३) खंड (२) के अधीन अपनी सिपारिशें करने में आयोग भारत की औद्योगिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक उन्नति का तथा लोक-सेवाओं के बारे में अहिन्दी भाषाभाषी क्षेत्रों के लोगों के न्यायपूर्ण दावों और हितो का सम्यक् ध्यान रखेगा।

(४) तीस सदस्यों की एक समिति गठित की जायेगी जिन में से बीस लोक-सभा के सदस्य होंगे तथा दस राज्य-सभा के सदस्य होंगे जो कि क्रमशः लोक-सभा के सदस्यों तथा राज्य-सभा के सदस्यों द्वारा अनुपाती प्रतिनिधित्व-पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा निर्वाचित होंगे।

(५) खंड (१) के अधीन गठित आयोग की सिपारिशों की परीक्षा करना तथा उन पर अपनी राय का प्रतिवेदन राष्ट्रपति को करना समिति का कर्तव्य होगा।

(६) अनुच्छेद ३४३ में किसी बात के होते हुए भी राष्ट्रपति खंड (५) में निर्दिष्ट प्रतिवेदन पर विचार करने के पश्चात् उस सारे प्रतिवेदन के या उसके किसी भाग के अनुसार निदेश निकाल सकेगा।

अध्याय २. प्रादेशिक भाषाएं

राज्य की राजभाषा
राजभाषायें
३४५. अनुच्छेद ३४६ और ३४७ के उपबन्धों के अधीन रहते हए राज्य का विधानमंडल विधि द्वारा उस राज्य के राजकीय प्रयोजनों में से सब या किसी के लिये प्रयोग के अर्थ उस राज्य में प्रयुक्त होने वाली भाषाओं में से किसी एक या अनेक को या हिन्दी को अंगीकार कर सकेगा :

परन्तु जब तक राज्य का विधानमंडल विधि द्वारा इस से अन्यथा उपबन्ध न करे तब तक राज्य के भीतर उन राजकीय प्रयोजनों के लिये अंग्रेजी भाषा प्रयोग की जाती रहेगी जिनके लिये इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहिले वह प्रयोग की जाती थी।

एक राज्य और दूसरे
के बीच में अथवा राज्य
और संघ के बीच में
संचार के लिए राजभाषा
३४६. संघ में राजकीय प्रयोजनों के लिये प्रयुक्त होने के लिये तत्समय प्राधिकृत भाषा एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच में तथा किसी राज्य और संघ के बीच में संचार के लिये राजभाषा होगी :

परन्तु यदि दो या अधिक राज्य करार करते हैं कि ऐसे राज्यों के बीच में संचार के लिये राजभाषा हिन्दी भाषा होगी तो ऐसे संचार के लिये वह प्रयोग की जा सकेगी।

किसी राज्य के
जनसमुदाय के
किसी विभाग
द्वारा बोली जाने
वाली भाषा के
सम्बन्ध में विशेष
उपबन्ध
३४७. तद्विषयक मांग की जाने पर यदि राष्ट्रपति का समाधान हो जाये कि किसी राज्य के जनसमुदाय का पर्याप्त अनुपात चाहता है कि उस के द्वारा बोली जाने वाली कोई भाषा राज्य द्वारा अभिज्ञात की जाये तो वह निदेश दे सकेगा कि ऐसी भाषा को भी उस राज्य में सर्वत्र अथवा उसके किसी भाग में ऐसे प्रयोजन के लिये, जैसा कि वह उल्लिखित करे, राजकीय अभिज्ञा दी जाये।

20––1 Law/57