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भारत का संविधान

भाग १७––राजभाषा––अनु॰ ३५०––३५१
अध्याय ४.––विशेष निदेश

व्यथा के निवारण
के लिये अभिवेदन
में प्रयोक्तव्य भाषा
३५०. किसी व्यथा के निवारण के लिये संघ या राज्य के किसी पदाधिकारी या प्राधिकारी को यथास्थिति संघ में या राज्य में प्रयोग होने वाली किसी भाषा में अभिवेदन देने का प्रत्येक व्यक्ति को हक्क होगा।


प्राथमिक प्रक्रम
में मातृभाषा में
शिक्षा देने के
लिए सुविधाएं
[१][३५०क. प्रत्येक राज्य और राज्य के अन्दर प्रत्येक स्थानीय प्राधिकारी का यह प्रयास होगा कि भाषाजात अल्पसंख्यक वर्गों के बालकों को शिक्षा के प्राथमिक प्रक्रम में मातृभाषा में शिक्षा देने के लिये पर्याप्त सुविधायें उपबन्धित की जाये, और राष्ट्रपति किसी राज्य को ऐसे निदेश दे सकेगा जैसे कि वह ऐसी सुविधाओं का उपबन्ध सुनिश्चित कराने के लिये आवश्यक या उचित समझता है।

भाषाजात
अल्पसंख्यकों के
लिए विशेष
पदाधिकारी
३५०ख. (१) भाषाजात अल्पसंख्यकों के लिये एक विशेष पदाधिकारी होगा जो राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जायेगा।

(२) भाषाजात अल्पसंख्यकों के लिये जो परित्राण इस संविधान के अधीन उपबन्धित है उनसे संबद्ध सब विषयों का अनुसन्धान करेगा और ऐसी अन्तरावधियों पर उन विषयों के संबंध में, जैसे कि राष्ट्रपति निर्दिष्ट करें, राष्ट्रपति को प्रतिवेदन देना विशेष पदाधिकारी का कर्त्तव्य होगा, और राष्ट्रपति ऐसे सब प्रतिवेदनों को संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवायेगा और संबंधित राज्यों की सरकारों को भिजवायेगा।]

हिन्दी भाषा
के विकास के
लिये निदेश
३५१. हिन्दी भाषा की प्रसार वृद्धि करना, उस का विकास करना ताकि वह भारत की सामाजिक संस्कृति के सब तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम हो सके, तथा उसकी आत्मीयता में हस्तक्षेप किये बिना हिन्दुस्तानी और अष्टम अनुसूची में उल्लिखित अन्य भारतीय भाषाओं के रूप, शैली और पदावलि को आत्मसात करते हुये तथा जहां तक आवश्यक या वांछनीय हो वहां उसके शब्द-भंडार के लिये मुख्यतः संस्कृत से तथा गौणतः अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उस की समृद्धि सुनिश्चित करना संघ का कर्त्तव्य होगा।

  1. संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २१ द्वारा अन्तःस्थापित।