पृष्ठ:भारत का संविधान (१९५७).djvu/३०७

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भाग १८

आपात-उपबन्ध

आपात की
उद्घोषणा
[१]३५२. (१) यदि राष्ट्रपति को समाधान हो जाये कि गम्भीर आपात विद्यमान है जिससे कि युद्ध या बाह्य आक्रमण या आभ्यन्तरिक अशान्ति से भारत या उस के राज्यक्षेत्र के किसी भाग की सुरक्षा संकट में है तो वह उद्घोषणा द्वारा उस आशय की घोषणा कर सकेगा।

(२) खंड (१) के अधीन की गई उद्घोषणा—

(क) उत्तरवर्ती उद्घोषणा द्वारा प्रतिसंहृत की जा सकेगी;
(ख) संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखी जायेगी;
(ग) दो मास की समाप्ति पर प्रवर्तन में न रहेगी जब तक कि संसद् के दोनों सदनों के संकल्पों द्वारा वह उस कालावधि की समाप्ति से पहिले अनुमोदित न कर दी जाये;

परन्तु यदि ऐसी कोई उद्घोषणा उस समय निकाली गई है जब कि लोक-सभा का विघटन हो चुका है अथवा लोक-सभा का विघटन इस खंड के उपखंड (ग) में निर्दिष्ट दो मास की कालावधि के भीतर हो जाता है, तथा यदि उद्घोषणा का अनुमोदन करने वाला संकल्प राज्य-सभा द्वारा पारित हो चुका है किन्तु ऐसी उद्घोषणा के विषय में लोक-सभा द्वारा उस कालावधि की समाप्ति में पहिले कोई संकल्प पारित नहीं किया गया है तो उद्घोषणा उस तारीख में, जिसमें कि लोक-सभा अपने पुनर्गठन के पश्चात् प्रथम बार बैठती है, तीस दिन की समाप्ति पर प्रवर्तन में न रहेगी जब तक कि उक्त तीस दिन की कालावधि की समाप्ति से पूर्व उद्घोषणा को अनुमोदन करने वाला संकल्प लोक-सभा द्वारा भी पारित नहीं हो जाता।

(३) यदि राष्ट्रपति का समाधान हो जाये कि युद्ध या बाह्य आक्रमण या आभ्यन्तरिक अशान्ति का संकट सन्निकट है तो चाहे वास्तव में युद्ध अथवा ऐसा कोई आक्रमण या अशान्ति नहीं हुई हो तो भी भारत की अथवा भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भाग की सुरक्षा इस प्रकार से संकट में है ऐसे घोषित करने वाली आपात की घोषणा की जा सकेगी।

आपात की
उद्घोषणा का
प्रभाव
३५३. जब आपात की उद्घोषणा प्रवर्तन में है तब—

(क) इस संविधान में किसी बात के होते हुये भी संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार किसी राज्य को इस विषय में निदेश देने तक होगा कि वह राज्य अपनी कार्यपालिका शक्ति का किस रीति से प्रयोग करें;
(ख) किसी विषय के संबंध में विधि बनाने की संसद् की शक्ति के अन्तर्गत ऐसी विधियां बनाने की शक्ति भी होगी जो उस विषय के बारे में संघ अथवा संघ के पदाधिकारियों और प्राधिकारियों को शक्तियां देती तथा कर्त्तव्य सौंपती हो अथवा शक्तियों का दिया जाना और कर्तव्यों का सौंपा जाना प्राधिकृत करती हो चाहे फिर वह विषय ऐसा हो जो संघ सूची में प्रगणित नहीं है।

  1. जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू होने में अनुच्छेद ३५२ में निम्नलिखित नया खंड जोड़ दिया जायेगा, अर्थात्–
    "(४) केवल आभ्यान्तरिक अशांति या उसके सन्निकट संकट के ही आधार पर की गयी आपात की उद्घोषणा (अनुच्छेद ३५४ के विषय के सिवाय) जम्मू और कश्मीर राज्य के सम्बन्ध में तब तक लागू न होगी जब तक कि वह उस राज्य की सरकार की प्रार्थना पर या उसकी सहमति से नहीं की गई है।"