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भारत का संविधान


भाग १८—आपात-उपबन्ध—अनु॰ ३५६—३५७

(३) इस अनुच्छेद के अधीन की गई प्रत्येक उद्घोषणा संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखी जायेगी, तथा जहां वह पूर्ववर्ती उद्घोषणा को प्रतिसंहृत करने वाली उद्घोषणा नहीं है वहां वह दो महीने की समाप्ति पर, यदि उस कालावधि की समाप्ति से पूर्व संसद् के दोनों सदनों के संकल्पों द्वारा वह अनुमोदित नहीं हो जाती तो, प्रवर्तन में नही रहेगी :

परन्तु यदि ऐसी कोई उद्घोषणा (जो पहिले की उद्घोषणा को प्रतिसंहृत करने वाली नहीं है) उस समय निकाली गई है जब कि लोक-सभा का विघटन हो चुका है अथवा लोक-सभा का विघटन इस खंड में निर्दिष्ट दो मास की कालावधि के भीतर हो जाता है तथा यदि उद्घोषणा का अनुमोदन करने वाला संकल्प राज्य-सभा द्वारा पारित हो चुका है किन्तु ऐसी उद्घोषणा के विषय में लोक-सभा द्वारा उस कालावधि की समाप्ति से पहिले कोई संकल्प पारित नहीं किया गया है तो उद्घोषणा उस तारीख से, जिस में कि लोक-सभा अपने पुनर्गठन के पश्चात प्रथम बार बैठती है, तीस दिन की समाप्ति पर प्रवर्तन में न रहेगी जब तक कि उक्त तीस दिन की कालावधि की समाप्ति से पूर्व उद्घोषणा को अनुमोदन करने वाला संकल्प लोक-सभा द्वारा भी पारित नहीं हो जाता।

(४) इस प्रकार अनुमोदित उद्घोषणा, यदि प्रतिसंहृत नहीं हो गई हो तो, इस अनुच्छेद के खंड (३) के अधीन उद्घोषणा का अनुमोदन करने वाले संकल्पों में से दूसरे के पारित हो जाने की तारीख से छः महीने की कालावधि की समाप्ति पर प्रवर्तन में नहीं रहेगी :

परन्तु ऐसी उद्घोषणा के प्रवृत्त रखने के लिये अनुमोदन करने वाला संकल्प, यदि और जितनी बार संसद् के दोनों सदनों द्वारा पारित हो जाता है तो, और उतनी बार, वह उद्घोषणा, जब तक कि वह प्रतिसंहृत न हो जायें, उस तारीख में जिसमें कि वह इस खंड के अधीन अन्यथा प्रवर्तन में नहीं रहती, छ: महीने की और कालावधि तक प्रवृत्त बनी रहेगी, किन्तु कोई ऐसी उद्घोषणा किसी अवस्था में भी तीन वर्ष में अधिक प्रवृत्त नहीं रहेगी :

परन्तु यह और भी कि यदि लोक-सभा का विघटन छ:मास की किसी ऐसी कालावधि के भीतर हो जाता है तथा ऐसी उद्घोषणा का प्रवृत्त बनाये रखने का अनुमोदन करने वाला संकल्प राज्य-सभा द्वारा पारित हो चुका है किन्तु ऐसी उद्घोषणा को प्रवृत्त बनाये रखने के बारे में कोई संकल्प लोक-सभा द्वारा उक्त कालावधि में पारित नहीं हुआ है तो उद्घोषणा उस तारीख से जिस में कि लोक-सभा अपने पुनर्गठन के पश्चात् प्रथम बार बैठती है, तीस दिन की समाप्ति पर प्रवर्तन में न रहेगी जब तक कि उक्त तीस दिन की कालावधि की समाप्ति से पूर्व उद्घोषणा को प्रवर्तन में बनाये रखने का अनुमोदन करने वाला संकल्प लोक-सभा द्वारा भी पारित नहीं हो जाता।

अनुच्छेद ३५६ के
अधीन निकाली
गई उद्घोषणा के
अधीन विधायिनी
शक्तियों का प्रयोग
[१]३५७. (१) जहां अनुच्छेद ३५६ के खंड (१) के अधीन निकाली गई उद्घोषणा द्वारा यह घोषित किया गया है कि राज्य के विधानमंडल की शक्तियां संसद् के प्राधिकार के द्वारा या अधीन प्रयोक्तव्य होगी वहां—

(क) राज्य के विधानमंडल की विधि बनाने की शक्ति राष्ट्रपति को देने के लिये तथा ऐसी दी हुई शक्ति को किसी अन्य प्राधिकारी को जिसे राष्ट्रपति, उस लिये उल्लिखित करे, ऐसी शर्तों के अधीन, जिन्हें आरोपित करना वह उचित समझे, प्रन्यायोजन करने के लिये राष्ट्रपति को प्राधिकृत करने की संसद् की,

  1. अनुच्छेद ३५७ जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू न होगा।