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भारत का संविधान

 

द्वितीय अनुसूची

८. [१]* * * राज्य की विधान-सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को तथा [२][राज्य] की विधान-परिषद् के सभापति और उपसभापति को ऐसे वेतन और भत्ते दिये जायेंगे जैसे कि क्रमशः तत्स्थानी प्रान्त की विधान-सभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को तथा विधान-परिषद् के सभापति और उपसभापति को इस संविधान के प्रारम्भ से ठीक पहिले देय थे, तथा जहां तत्स्थानी प्रान्त की ऐसे प्रारम्भ से ठीक पहिले कोई विधान-परिषद् न थी वहां उस राज्य की विधान-परिषद् के सभापति और उपसभापति को ऐसे वेतन और भत्ते दिये जायेंगे जैसे कि उस राज्य का राज्यपाल निर्धारित करे।

भाग घ

उच्चतमन्यायालय तथा [१]* * * उच्चन्यायालयों के न्यायाधीशों के सम्बन्ध में उपबन्ध

[३]९. (१) उच्चतमन्यायालय के न्यायाधीशों को वास्तविक सेवा में बिताये समय के बारे में निम्नलिखित दर में प्रति मास वेतन दिया जायेगा अर्थात—

मुख्य न्यायाधिपति ५,००० रुपया
कोई अन्य न्यायाधीश ४,००० रुपया

परन्तु यदि उच्चतमन्यायालय के न्यायाधीश को अपनी नियुक्ति के समय भारत सरकार की या उस की पूर्ववती सरकारों में से किसी की अथवा राज्य की सरकार को अथवा उनकी पूर्ववर्ती सरकारों में से किसी की पहिले की गई सेवा के बारे में (निर्योग्यता या क्षत-पेन्शन से अतिरिक्त) कोई निवृत्ति-वेतन मिलता हो तो उच्चतमन्यायालय में सेवा के बारे में उस के वेतन में से

[४](क) निवृत्ति-वेतन की राशि, और
(ख) यदि उसने ऐसी नियुक्ति से पूर्व, ऐसी पूर्व सेवा के सम्बन्ध में अपने को देय निवृत्ति-वेतन के एक प्रभाग के बदले में उसका संराशित मूल्य प्राप्त किया है तो निवृत्ति-वेतन के उस प्रभाग की राशि, और

  1. १.० १.१ "प्रथम अनुसूची के भाग (क) में उल्लिखित" शब्द संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम १९५६, धारा २९ और अनुसूची द्वारा लुप्त कर दिये गये।,
  2. उपरोक्त के ही द्वारा "ऐसे राज्य" के स्थान पर रखा गया।
    "प्रथम अनुसूची के भाग (क) में के राज्यों के" शब्द और अक्षर संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २५ द्वारा लुप्त कर दिये गये।
  3. संविधान (कठिनाइयां दूर करना) आदेश संख्या ९ की कंडिका २ उपबन्ध करती है कि ७ नवम्बर १९५१ से आठ वर्ष की कालावधि तक भारत के संविधान की द्वितीय अनुसूची निम्नलिखित अनुकूलन के अधीन रहकर प्रभावी होगी, अर्थात—
    "कंडिका ९ की उपकंडिका (३) के स्थान पर निम्नलिखित उपकंडिका (ख) रख दी जाएगी, अर्थात्–
    (३) इस कंडिका की उपकंडिका (२) में की कोई बात ऐसे न्यायाधीश को, जो इस संविधान के प्रारम्भ से ठीक पहिले फेडरलन्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पद धारण कर रहा था और ऐसे प्रारम्भ पर अनुच्छेद ३७४ के खंड (१) के अधीन उच्चतमन्यायालय का न्यायाधीश हो गया है उस कालावधि के दौरान, जिसमें कि वह उस न्यायालय के मुख्य न्यायाधिपति से भिन्न न्यायाधीश के रूप में पद धारण करता है लागू न होगी; और प्रत्येक ऐसा न्यायाधीश मुख्य न्यायाधिपति से भिन्न न्यायाधीश के रूप में वास्तविक सेवा पर बिताये समय के सम्बन्ध में, या यदि वह मुख्य न्यायाधिपति होने के लिये या उस रूप में कार्य करने के लिये नियुक्त है तो ऐसे मुख्य न्यायाधिपति के रूप में वास्तविक सेवा पर बिताये समय के सम्बन्ध में उस कंडिका की उपकंडिका (१) में उल्लिखित वेतन के अतिरिक्त इन संविधान के आरम्भ से ठीक पहिले फेडरलन्यायालय के न्यायाधीश के रूप में उसको देय वतन और इस प्रकार उल्लिखित वेतन के बीच के अन्तर की समतुल्य राशि विशेष वेतन के रूप में पाने का हक्कदार होगा।
  4. संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २५ द्वारा "निवृत्ति-वेतन की राशि घटा दी जाएगी" के स्थान पर रख गये।