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भारत का संविधान
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षष्ठ अनुसची

परन्तु ऐसी विधियों की किसी बात से अनिवार्य अर्जन प्राधिकृत करने वाली तत्समय प्रवत्त विधि के अनुसार आसाम राज्य को, किसी भूमि के, चाहे वह दखल में हो या न हो, लोक-प्रयोजनार्थ अनिवार्य अर्जन पर रुकावट न होगी,
(ख) रक्षित वन न होने वाले किसी वन का प्रबन्ध;
(ग) कृषि प्रयोजनार्थ किसी नहर या जलधारा का उपयोग;
(घ) झूम की प्रथा का अथवा अन्य प्रकारों की स्थानान्तरणशील कृषि की प्रथा का विनियमन;
(ङ) ग्राम अथवा नगर समितियों या परिषदों की स्थापना और उनकी शक्तियां;
(च) ग्राम या नगर-प्रशासन से सम्बद्ध कोई अन्य विषय जिन के अन्तर्गत ग्राम या नगर आरक्षी और लोक-स्वास्थ्य और स्वच्छता भी है;
(छ) प्रमुखों या मुखियों की नियुक्ति अथवा उत्तराधिकार;
(ज) सम्पत्ति का दायभाग;
(झ) विवाह;
(ञ) सामाजिक रूढ़ियां।

(२) इस कंडिका में "रक्षित वन" से ऐसा क्षेत्र अभिप्रेत है जो आसाम-वन-विनियम १८६१ के अधीन, अथवा प्रश्नास्पद क्षेत्र में किसी दूसरी तत्समय प्रवृत्त विधि के अधीन, रक्षित बन है।

(३) इस कंडिका के अधीन निर्मित सब विधियां तुरन्त राज्यपाल के समक्ष रखी जायेंगी और जब तक वह उनको अनुमति न दे दे प्रभावी न होंगी।

४. स्वायत्तशासी जिलों और स्वायत्तशासी प्रदेशों में न्याय प्रशासन.—(१) स्वायत्तशामी प्रदेशकी प्रादेशिक परिषद् ऐसे प्रदेश के भीतर के क्षेत्रों के बारे में, तथा स्वायत्तशासी जिले की जिला-परिपद उस जिले के भीतर की प्रादेशिक परिपदों के, यदि कोई हों, प्राधिकाराधीन क्षेत्रों से उस जिले के भीतर के अन्य क्षेत्रों के बारे में, ऐसे व्यवहारवादों और मामलों के परीक्षण के लिये, जिन के सभी पक्ष ऐसे क्षेत्रों के भीतर की अनसूचित आदिमजातियों के ही हैं तथा जो उन व्यवहार-वादों से भिन्न हैं जिन्हें इस अनसूची की कंडिका ५ की उपकंडिका (१) के उपबन्ध लागू होते हैं, उस राज्य के प्रत्येक न्यायालय का अपवर्जन कर के ग्राम-परिपद या न्यायालय गठित कर सकेगी तथा उचित व्यक्तियों को ऐसी ग्राम-परिपदों के सदस्य अथवा ऐसे न्यायालयों के पीठासीन पदाधिकारी नियुक्त कर सकेगी, तथा ऐसे पदाधिकारी भी नियक्त कर सकेगी, जो इस अनुसूची की कंडिका ३ के अधीन बनाई हुई विधियों के प्रशासन के लिये आवश्यक हों।

(२) इस संविधान में किसी बात के होते हए भी स्वायत्तशासी प्रदेश की प्रादेशिक परिषद अथवा उस प्रादेशिक परिषद् द्वारा उस लिये गठित कोई न्यायालय अथवा, यदि किसी स्वायत्तशासी जिले के अन्तर्गत किसी क्षेत्र के लिये कोई प्रादेशिक परिषद न हो तो ऐसे जिले की जिला-परिषद अथवा उस जिला-परिषद् द्वारा उस लिये गठित कोई न्यायालय, इस अनुसूची की कंडिका ५ की उपकंडिका (१) के उपबन्ध जिन व्यवहार-वादों और मामलों को लागू होते हों उनको छोड़ कर, इस कंडिका की उपकंडिका (१) के अधीन यथास्थिति ऐसे प्रदेश अथवा क्षेत्र के अन्तर्गत गठित ग्राम-परिषद् अथवा न्यायालय द्वारा परीक्षणीय समस्त व्यवहार-वादों और मामलों में अपीलीय न्यायालय की शक्तियां प्रयोग में लायेगा तथा उच्चन्यायालय और उच्चतमन्यायालय को छोड़ कर किसी दूसरे न्यायालय को ऐसे व्यवहार-वादों अथवा मामलों में क्षेत्राधिकार न होगा।

(३) इस कंडिका की उपकंडिका (२) के उपबन्ध जिन व्यवहार-वादों और मामलों को लागू होते हैं उन पर आसाम का उच्चन्यायालय ऐसा क्षेत्राधिकार रखेगा और प्रयोग करेगा जैसा कि समय समय पर राज्यपाल आदेश द्वारा उल्लिखित करे।

(४) यथास्थिति प्रादेशिक परिषद् या जिला-परिषद् राज्यपाल के पूर्व अनुमोदन से—

(क) ग्राम-परिषदों और न्यायालयों के गठन तथा इस कंडिका के अधीन प्रयोक्तव्य उनकी शक्तियों के,