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भारत का संविधान


षष्ठ अनुसूची

(स) इस कंडिका की उपकंडिका (१) के अधीन व्यवहार-वादों और मामलों के परीक्षण में परिषदाे या न्यायालया द्वारा अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया के,
(ग) इस कंडिका की उपकंडिका (२) के अधीन अपीलों और अन्य कार्यवाहियों में प्रादेशिक या जिला-परिषद् अथवा ऐसी परिषद् द्वारा संगठित किसी न्यायालय द्वारा अनुसरण को जाने वाली प्रक्रिया के,
(घ) ऐसी परिषदों और न्यायालयों के विनिश्चयों और आदेशों के परिपालन के,
(ड) इस कंडिका की उपकंडिका (१) और (२) के उपबन्धों को कार्यान्वित करने के लिये अन्य सब सहायक विषयों के, विनियमन के लिये नियम बना सकेगी।

५. कछ वादों,मामलों और अपराधों के परीक्षण के लिये प्रादेशिक और जिला-परिषदों को तथा किन्हीं न्यायालयों और पदाधिकारियों को व्यवहार-प्रक्रिया संहिता १९०८ तथा दंड-प्रक्रिया संहिता १८९८ के अधीन शक्तियों का प्रदान.—(१) राज्यपाल किसी स्वायत्तशासी जिले या प्रदेश में किसी ऐसी प्रवृत विधि से, जिसका उल्लेख राज्यपाल ने उस लिये किया हेे, पैदा हुए व्यवहारवादों या मामलों को परीक्षण के लिये, अथवा भारतीय दंड-संहिता के अधीन अथवा जिले या प्रदेश में तत्समय लागू किसी अन्य विधि के अधीन मृत्यु, आजीवन कालापानी या पांच वर्ष से अन्यन अवधि के लिये कारावाग मे दंडनीय अपराधो के परीक्षण के लिये ऐसे जिले अथवा प्रदेश पर प्राधिकार रखने वाली जिला-परिषद् या प्रादेगिक परिषद् का अथवा ऐसी जिला-परिषद् द्वारा गठित न्यायालयों को अथवा राज्यपाल द्वारा उस लिये नियुक्त किसी पदाधिकारी को यथास्थिति व्यवहार-प्रत्रिया-संहिता १९०८ के, या दंड-पक्रिया-संहिता १८९८ के अधीन ऐसी शक्तियां प्रदान कर सकेगा जैसा कि वह समुचित समझे और ऐसा होने पर उक्त परिषद्, न्यायालय या पदाधिकारी इस प्रकार प्रदत्त शक्तियों के प्रयोग में व्यवहार-वादों, मामलों या अपराधों का परीक्षण करेगा।

(२) राज्यपाल किसी जिला-परिषद्, प्रादेशिक परिषद्, न्यायालय या पदाधिकारी को इस कंडिका की उपकंडिका (१) के अधीन प्रदत्त शक्तियों में से किसी को वापस ले सकेगा या रुपभेद कर सकेगा।

(३) इस कंडिका में स्पष्टतापूर्वक उपवन्धित दशा के अतिरिक्त व्यवहार-प्रक्रिया-संहिता १९०८ और दंड-प्रत्रिया-संहिता १८९८ किसी स्वायत्तशासी जिले में या किसी स्वायत्तशासी प्रदेश में, जिसको इस कंडिका के उपबन्ध लागू होते हैं, किन्हीं व्यवहार-वादों, मामलों या अपराधों के परीक्षण में लागू न होगी।

६. प्राथमिक विद्यालयों आदि को स्थापित करने की जिला परिषद् की शक्ति.—स्वायत्तशासी जिले की जिला-परिषद्, जिले में प्राथमिक विद्यालयों, औषधालयों, बाजारों, कांजीहौस, नौघाट, मीन-क्षेत्र, सड़कों और जल-पथों की स्थापना, निर्माण और प्रबन्ध कर सकेगी तथा विशेषतया जिले में के प्राथमिक विद्यालयों में प्राथमिक शिक्षा जिस भाषा में और जिस रीति से दी जाये, इसका निर्धारण कर सकेगी।

७. जिला और प्रादेशिक निधियां.—(१) प्रत्येक स्वायत्तशासी जिले के लिये जिला-निधि तथा प्रत्येक स्वायत्तशासी प्रदेश के लिये प्रादेशिक निधि गठित की जायेगी जिसमें क्रमशः उस जिले की जिला- परिषद् द्वारा तथा उस प्रदेश की प्रादेशिक परिषद् द्वारा यथास्थिति उरा जिले या प्रदेश के इस संविधान के उपबन्धों के अनुसार प्रशासन करने में प्राप्त सब धनों को जमा किया जायेगा।

(२) यथास्थिति जिला-निधि या प्रादेशिक निधि के प्रबन्ध के लिये जिला-परिषद् और प्रादेगिक परिषद् राज्यपाल के अनुमोदन से नियम बना सकेगी तथा इस प्रकार बने हुए नियम, उक्त निधि में धन के डालने के, उसमें से धन को निकालने के, उस में धन की अभिरक्षा के, तथा उपरोक्त विषयों से संसक्त या इनके सहायक किसी अन्य विषय के, सम्बन्ध में अनुसरणीय प्रक्रिया निर्धारित कर सकेंगे।