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परिशिष्ट


व्याख्या—इस उपधारा में "प्रवृत्त विधि" अभिव्यक्ति से वही अभिप्रेत है जो कि संविधान के अनुच्छेद १३ के खंड (१) में अभिप्रेत है।

नये अनुच्छेद ३१क
का अन्तःस्थापन
४. संविधान के अनुच्छेद ३१ के पश्चात् निम्नलिखित अनुच्छेद अन्तःस्थापित किया जायेगा और उसकी बाबत समझा जायेगा कि वह सदा ही ऐसे अन्तःस्थापित रहा है, अर्थात्–

सम्पदाओ आदि
के अर्जन के लिए
उपबंध करने
वाली विधियों की
व्यावृत्ति
"३१क. (१) इस भाग के पूर्ववर्ती उपबन्धों में किसी बात के होते हए भी, किसी सम्पदा के या उसमें किन्हीं अधिकारों के राज्य द्वारा अर्जन के लिये या किन्हीं ऐसे अधिकारों के निर्वापन या रूपभेद के लिये उपबन्ध करने वाली कोई विधि केवल इस कारण कि वह इस भाग के किन्हीं उपबन्धों द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किसी से असंगत है या उसको छीनती या न्यून करती है, शून्य नहीं समझी जायेगी।

परन्तु जहां कि ऐसी विधि किसी राज्य के विधान-मंडल द्वारा निर्मित विधि है वहां जब तक कि ऐसी विधि को, राष्ट्रपति के विचारार्थ रक्षित रखे जाने पर उसे राष्ट्रपति की अनुमति प्राप्त न हो गई हो इस अनुच्छेद के उपबन्ध उस विधि के सम्बन्ध में लागू नहीं होंगे।

(२) इस अनुच्छेद में—

(क) “सम्पदा" पद का किसी स्थानीय क्षेत्र के सम्बन्ध में वही अर्थ है जो कि उस या उसकी स्थानीय समतुल्य अभिव्यक्ति का उस क्षेत्र में प्रवृत्त भूधृतियों से सम्बद्ध विद्यमान विधि में है और उसके अन्तर्गत कोई जागीर, इनाम या मुआफी अथवा अन्य समान प्रकार का अनुदान भी होगा,
(ख) “अधिकार" पद के अन्तर्गत किसी सम्पदा के सम्बन्ध में, किसी स्वत्वधारी, उपस्वत्वधारी, अपर स्वत्वधारी, भू-धृतिधारी या अन्य मध्यवर्ती में निहित कोई अधिकार और भू राजस्व के बारे में कोई अधिकार या विशेषाधिकार भी होंगे।"

नये अनुच्छेद ३१ख
का अन्तःस्थापना
५. धारा ४ द्वारा यथा अन्तःस्थापित संविधान के अनुच्छेद ३१क के पश्चात् निम्नलिखित अनुच्छेद अन्तःस्थापित किया जायेगा, अर्थात—

कुछ अधिनियमों
और विनियमों
का मान्यकरण
"३१ख अनुच्छेद ३१क में अन्तविर्ष्ट उपबन्धों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना न तो नवम् अनसूची मे उल्लिखित अधिनियमो और विनियमों में से और न उनके उपबन्धों में से किसी की बाबत इस कारण कि ऐसा अधिनियम, विनियम या उपबन्ध इस भाग के किन्हीं उपबन्धों द्वारा प्रदत्त अधिकारों में से किसी से असंगत है या उसको छीन लेता है या न्युन करता है यह न समझा जायेगा कि वह शून्य है या कभी शून्य हो गया था और किमी न्यायालय या न्यायाधिकरण के किसी प्रतिकूल निर्णय, आज्ञप्ति या आदेश के होते हुए भी उक्त अधिनियमों और विनियमों में से प्रत्येक, उसे निरस्त या संशोधित करने की किसी सक्षम विधान-मंडल की शक्ति के अधीन रहते हुए, निरन्तर प्रवृत्त रहेगा।"

अनुच्छेद ८५ का
संशोधन
६. संविधान के अनुच्छेद ८५ के स्थान पर निम्नलिखित अनुच्छेद रख दिया जायेगा, अर्थात्—

 

संसद् के सत्र,
सत्रावसान और
विघटन
"८५. (१) राष्ट्रपति समय समय पर संसद् के प्रत्येक सदन को, ऐसे समय तथा स्थान पर, जैसा कि वह उचित समझे, अधिवेशन के लिए आहूत करेगा, किन्तु उसके एक सत्र की अन्तिम बैठक और आगामी सत्र की प्रथम बैठक के लिये नियुक्त तारीख के बीच छः मास का अन्तर न होगा।