पृष्ठ:भारत का संविधान (१९५७).djvu/४४७

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परिशिष्ट


"(३) जहां तक कि किसी राज्य की कोई विधि अन्तराज्यिक व्यापार या वाणिज्य में ऐसी वस्तुओं के, जो कि संसद् द्वारा विधि द्वारा विशेष महत्व की घोषित की गई हैं, क्रय या विक्रय पर किसी कर का आरोपण करती है या आरोपण प्राधिकृत करती है, वहां तक वह विधि उस कर के उद्ग्रहण की पद्धति, दरों और अन्य प्रसंगतियों के सम्बन्ध में ऐसे निर्बन्धनों और शर्तों के अध्यधीन होगी जैसे कि संसद विधि द्वारा उल्लिखित करे।"