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परिशिष्ट


अनुच्छेद ८१ और
८२ के स्थानों में
नये अनच्छेद रखना
४. संविधान के अनुच्छेद ८१ और ८२ के स्थानों में निम्नलिखित अनुच्छेद रख दिये जाएंगे, अर्थात्—

 

लोक सभा की
रचना
"८१. (१) अनुच्छेद ३३१ के उपबन्धों के अधीन रहते हुए लोक सभा—

(क) राज्यों में प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने हुए पांच सौ से अनधिक सदस्यों, और
(ख) संघ गज्यक्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने के लिये ऐसी रीति में, जैसी कि संसद् विधि द्वारा उपबन्धित करे, चुने हुए बीस से अनधिक सदस्यों से मिल कर बनेगी।

(२) खड (१) के उपखंड (क) के प्रयोजनों के लिए—

(क) प्रत्येक राज्य के लिये लोक सभा में स्थानों की संख्या की बांट ऐसी रीति मे होगी कि उस संख्या से राज्य की जनसंख्या का अनुपात समस्त राज्यों के लिये यथागाध्य एक ही होगा, और।
(ख) प्रत्येक राज्य को प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में ऐसी रीति में विभा-जित किया जायेगा कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या का उसको आबंटित स्थानों की संख्या मे अनुपात समस्त राज्य में यथानाध्य एक ही होगा।

(३) इस अनुच्छेद में "जनसंख्या" पद से ऐसी अन्तिम पूर्वगत जनगणना से, जिसके नत्मान्धी आकडे प्रकाशित हो चुके है, निश्चित की गई जनसंख्या अभिप्रेत है।

प्रत्येक जनगणना के
पश्चात् पुनः
समायोजन
८२. प्रत्येक जनगणना की समाप्ति पर लोकसभा मे राज्यों को स्थानों के आवटन और प्रत्येक गज्य के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रो में विभाजन का ऐसे प्राधिकारी द्वारा और ऐसी रीति मे पुनः समायोजन किया जायेगा जैसा कि संसद विधि द्वारा निर्धारित करे;

परन्तु ऐसे पुनः समायोजन से लोकसभा में के प्रतिनिधित्व पर तब तक कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा जब तक कि उस समय वर्तमान सदन का विघटन न हो जाये।"

अनुच्छेद १३१ का
संशोधन
५. सविधान के अनच्छेद १३१ में परन्तुक के स्थान में निम्नलिखित परन्तुक रख दिया जाएगा, अर्थात्—

"परन्तु उक्त क्षेत्राधिकार का विस्तार उस विवाद पर न होगा जो किसी ऐसी मंधि, करार, प्रसंविदा, वचनबंध, सनद या अन्य तत्सम लिखत से, जो इस संविधान के प्रारम्भ से पहले की गयी या निष्पादित थी तथा ऐसे प्रारम्भ के पश्चात् प्रवर्तन में है, या जो उपबन्ध करती है कि वैसे क्षेत्राधिकार का विस्तार ऐसे विवाद पर न होगा, पैदा हुआ है।"

अनुच्छेद १५३ का
संशोधन
६. सविधान के अनुच्छेद १५३ में निम्नलिखित परन्तुक जोड़ दिया जाएगा, अर्थात्—

"परन्तु इस अनच्छेद में की कोई बात एक ही व्यक्ति को दो या अधिक राज्यों के लिये राज्यपाल नियुक्त करने से नहीं रोकेगी।"

अनुच्छेद १५८ का
संशोधन
७. सविधान के अनुच्छेद १५८ के खंड (३) के पश्चात् निम्नलिखित खंड अन्तःस्थापित किया जाएगा, अर्थात्—

"(३क) जहां एक ही व्यक्ति को दो या अधिक राज्यों के लिये राज्यपाल नियुक्त किया जाता है वहां उस राज्यपाल को देय उपलब्धियां और भत्तै उन राज्यों के बीच ऐसे अनुपात में आबंटित किये जाएंगे जैसा कि राष्ट्रपति आदेश द्वारा निर्धारित करे।"