सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:भारत का संविधान (१९५७).djvu/५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
भारत का संविधान

 

भाग ३—मूल अधिकार—अनु॰ १५-१७

(ख) पूर्ण या आंशिक रूप में राज्य-निधि से पोषित अथवा साधारण जनता के उपयोग के लिये समर्पित कुओं, तालाबों, स्नानघाटों, सड़कों तथा सार्वजनिक समागम स्थानों के उपयोग के बारे में किसी भी निर्योग्यता, दायित्व, निर्बन्धन अथवा शर्त के अधीन न होगा।

(३) इस अनुच्छेद की किसी बात से राज्य की स्त्रियों और बालकों के लिये कोई विशेष उपबन्ध बनाने में बाधा न होगी।

[][(४) इस अनुच्छेद की या अनुच्छेद २९ के खंड (२) की किसी बात से राज्य को सामाजिक और शिक्षात्मक दृष्टि से पिछड़े हुए किन्हीं नागरिक वर्गों की उन्नति के लिये या अनुसूचित जातियों और अनुसूचित आदिमजातियों के लिये कोई विशेष उपबन्ध करने में बाधा न होगी][]

राज्याधीन नौकरी
के विषय में
अवसर-समता
१६. (१) राज्याधीन नौकरियों या पदों पर नियुक्ति के सम्बन्ध में सब नागरिकों के लिये अवसर की समता होगी।

(२) केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, उद्भव, जन्मस्थान, निवास अथवा इनमें से किसी के आधार पर किसी नागरिक के लिये राज्याधीन किसी नौकरी या पद के विषय में न अपात्रता होगी और न विभेद किया जायेगा।

[](३) इस अनुच्छेद की किसी बात से संसद् को कोई ऐसी विधि बनाने में बाधा न होगी जो [][किसी राज्य या संघ राज्य-क्षेत्र की सरकार के या उसमें के किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी के अधीन किसी प्रकार की नौकरी या पद पर नियुक्ति के विषय में वैसी नौकरी या नियुक्ति के पूर्व उस राज्य या संघ राज्य क्षेत्र के अंदर निवास विषयक कोई अपेक्षा विहित करती हो।]

(४) इस अनुच्छेद की किसी बात से राज्य के पिछड़े हुये किसी नागरिक वर्ग के पक्ष में, जिन का प्रतिनिधित्व राज्य की राय में राज्याधीन सेवाओं में पर्याप्त नहीं है, नियुक्तियों या पदों के रक्षण के लिये उपबन्ध करने में कोई बाधा न होगी।

(५) इस अनुच्छेद की किसी बात का किसी ऐसी विधि के प्रवर्तन पर कोई प्रभाव न होगा जो उपबन्ध करती हो कि किसी धार्मिक या साम्प्रदायिक संस्था के कार्य से सम्बद्ध कोई पदधारी अथवा उसके शासी निकाय का कोई सदस्य किसी विशिष्ट धर्म का अनुयायी अथवा किसी विशिष्ट सम्प्रदाय का ही हो। अस्पृश्यता का अन्त

१७. "अस्पृश्यता" का अन्त किया जाता है और उसका किसी भी रूप में आचरण निषिद्ध किया जाता है। "अस्पृश्यता" से उपजी किसी निर्योग्यता को लागू अपराध होगा जो विधि के अनुसार दंडनीय होगा।


  1. संविधान (प्रथम संशोधन) अधिनियम, १९५१, धारा २, द्वारा अन्तःस्थापित।
  2. जम्मू और कश्मीर राज्य को लागू होने में अनुच्छेद १५ के खंड (४) में अनुसूचित आदिमजातियों के प्रति निर्देश लुप्त कर दिया जायेगा।
  3. अनुच्छेद १६ के खंड (३) में राज्य के प्रति निर्देश का ऐसे अर्थ किया जायेगा मानो कि उसके अन्तर्गत जम्मू और कश्मीर राज्य के प्रति निर्देश न हो।
  4. संविधान (सप्तम संशोधन) अधिनियम, १९५६, धारा २९ और अनुसूची द्वारा "प्रथम अनुसूची" में उल्लिखित किसी राज्य के अथवा उसके राज्य क्षेत्र में किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी के अधीन किसी प्रकार की नौकरी में या पद पर नियुक्ति के विषय में वैसी नौकरी या नियुक्ति के पूर्व उस राज्य के अंदर निवास विषयक कोई अपेक्षा विहित करती हो" शब्दों के स्थान पर रखे गये।