पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/१००

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शिवाजी पार्क, बम्बई ८६ - जब में कलकत्ता गया, तो बंगालवाले मेरे पास एक बड़ा प्रतिनिधि-मण्डल लेकर आए कि बिहार और उड़ीसा का यह जो झगड़ा चल रहा है, उसमें असली हक तो हमारा है। वह तो बंगाल को देना चाहिए। मैं कहता हूँ कि भाई, स्वराज्य तो अभी मिला है और अभी तक हम अपने देश को मजबूत भी नहीं बना पाए कि उसके पहले बाँटने का झगड़ा शुरू हो गया है । तब इधर हमारे महाराष्ट्र भाई कहते हैं कि हमारा कर्नाटक हमें दे दो। बरारबाले कहते हैं कि हमारा बरार तो अलग होना चाहिए। इस तरह से और और बातें भी चलती हैं। मैं संगठन करने की कोशिश करता हूँ कि सम्पूर्ण हिन्दुस्तान का एक संगठन करके खड़ा कर दूं और इधर इस तरह से काम चलता है । मैं अभी काठियावाड़ में गया था। सारे हिन्दुस्तान में जितने राज नहीं है, उतने राज काठियावाड़ में हैं। अढ़ाई-तीन सौ छोटे-छोटे राज वहाँ हैं। यदि हर एक राज का अलग-अलग रंग नकशे में भरना हो, तो इतने रंग तो मेरे पास नहीं हैं। कैसे करूँ ? इतनी हुकूमतों के अलग-अलग राज वहाँ हैं। उसमें आज एक हवा चली है कि छोटी-छोटी रियासतों के लोग भी कहते हैं कि हमको अलग-अलग रेस्पांसबिल गवर्नमेंट ( उत्तरदायी सरकार ) दे दो। जो है नहीं, वह देगा कैसे ? वहाँ रेस्पांसबिल गवर्नमेंट बनती कैसे ? कहीं ५ हजार की आबादी है, तो कहीं १० हजार की आबादी और बहुत हुआ तो कहीं २५ हजार की आबादी। किसी राजा के पास २० गाँव हैं, किसी के पास २५ गाँव और जो सबसे बड़ी स्टेट है, उसकी आबादी छः, साढ़े छः लाख की है। यह तो गनीमत हुई कि म जूनागढ़ लेकर बैठ गए। अब काठियावाड़ में इतने छोटे-मोटे राजा हैं, उन सबको मैंने समझाने की कोशिश की कि भाई अपने यहाँ सौराष्ट्र नाम का एक प्रान्त बना लो और इस तरह महा- सागर के भाग बनो, उसमें खेलो। इस तरह यह क्या कर रहे हो? अंग्रेज गया तो उसके साथ सार्वभौम सत्ता भी चली गई। जैसे हम बरणी में आम का आचार रखते हैं, कि आचार में कीड़ा न पड़े, इसलिए कुछ तेल भी डाल देते हैं, उसी तरह आपको रखकर उसने अपने स्वाद के लिए सामान पैदा किया था। अब वह चला गया। अब आप को चाहिए कि आप ठीक हो जाओ, और अपने को हवा लगने दो। वे सब समझ गए कि यह ठीक कहता है । तो कल रात मेरे पास उनका टेलीफोन आया कि हमने फैसला कर लिया है कि हमें एक सौराष्ट्र बनाना है। इस तरह से काम चलता है ।