पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/१०२

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शिवाजी पार्क, बम्बई ह? लेकिन भला कैसे होगा? भला इस तरह होगा कि हम रुपया पैदा करें, और फिर उसे आपस में बाँट लें । लेकिन अगर हम कुछ पैदा ही नहीं करें, तो न कुछ मजदूर को मिलेगा, न धनी को मिलेगा, न हमको मिलेगा। बार-बार कहा जाता है कि हमें लीडरशिप चाहिए । नेतागीरी तो आज मुल्क में रास्ता बन गया है। किसी को नेता बनना हो तो पहले कोई स्पीच करो, कैपिटलिस्ट लोगों को गाली दो। उसके बिना तो चलता नहीं । लोग मानते ही नहीं । कैपिटलिस्ट को दो गाली दो, तो एक-दो गाली, जो सामने बैठा उसको दो और एक-दो गाली राजाओं को दो। बस, फिर लीडरशिप मिल गई। मगर इस तरह की लीडरशिप से किसी का क्या भला होगा? मैं राजाओं से भी कह सकता हूँ और बहुत खरी बातें मैं उन्हें सुनाता हूँ। इसी तरह कैपिटलिस्टों से भी मुहब्बत करता हूँ, लेकिन उनको कड़ी बात भी सुनाता हूँ। लेकिन अगर मुझे समझ आ जाए कि हमारे मुल्क में एक-ए कैपिटलिस्ट की कैपिटल खत्म कर देने से हिन्दुस्तान का भला होगा, तो उसे खत्म कर देने में मेरा नम्बर पहला होगा। मैं पीछे नहीं रहूँगा। मैंने कल भी कहा था, आज भी आप लोगों से कहता हूँ और आप भाइयों को समझाना चाहता हूँ कि मुझे सोशलिज्म सिखाने की किसी को ज़रूरत नहीं। मार-पीट सिखाने की भी मुझे ज़रूरत नहीं है। जब से मैंने गान्धी जी का साथ दिया, और आज इस बात को बहुत साल हो गए, तभी से मैंने फैसला किया था कि यदि पब्लिक लाइफ ( सार्वजनिक जीवन ) में काम करना हो, अपनी मिल्कियत नहीं रखनी चाहिए । सोचिए जरा। तब से आज तक मैंने अपनी कोई चीज नहीं रक्खी। न मेरा कोई बैंक एकाउंट है, न मेरे पास कोई जमीन है, और न मेरे पास कोई अपना मकान है। मैं यह कुछ रखना ही नहीं चाहता हूँ। अगर मैं रखू, तो मैं इसे पाप समझता हूँ। मुझे कोई सोशलिज़म का पाठ सिखाए, तो फिर उसे सीखना पड़ेगा कि पब्लिक तरह से चलानी है। बातें बहुत चलती हैं। किसी ने मेरा नाम सरदार कर दिया। अब यहाँ बम्बई में जो सरदार-गृह है, उसके बारे में कलकत्ता के एक अखबार में छपा कि सरदार के पास बम्बई में बड़े-बड़े मकान हैं। उसके नाम पर है। सरदार नाम से अब इस तरह मेरी इज्जत तो बहुत बढ़ती है और शायद उनसे मुझे क्रेडिट पर रुपया भी मिल जाए तो हमारे मुल्क में ऐसी धोखेबाजी बहुत चलती है। मगर मैं आप से यह लाइफ किस