पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/१०४

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शिवाजी पार्क, बम्बई ६३ यह समझ लेना चाहिए। यह भी जान लेना चाहिए कि लड़ाई में क्या सामान काम आता है। वैसे तो, हमारे बहुत-से सोल्जर्स ( सिपाही) पिछली लड़ाई से डीमोबिलाईज़ ( सेना से मुक्त होकर ) होकर आए हैं, उनसे पूछो कि क्या- क्या चीज़ चाहिए। पहले तो सोल्जर के पास बन्दुक चाहिए। वह बन्दूकें हमारे यहां कितनी हैं और कहाँ बनती हैं ? आज नौजवान कहते हैं कि हमको भर्ती करो। हमें काश्मीर जाना है, हमें यह करना है, हमें बह करना है। लेकिन स्ट्राइक से तो यह नहीं चलेगा। भर्ती कर नौजवान को तो तालीम देनी पड़ती है और तालीम के साथ उसको फिट बनाकर उसे बन्दूक भी देनी पड़ती है। बन्दूक के साथ गोला-बारूद देना पड़ता है। वह सब कहाँ से आता है ? बन्दूकों के लिए और लड़ाई के लिए जितनी सामग्री चाहिए, उसके लिए हमें कारखाने बनाने पड़ेंगे । उन कारखानों में यदि कम सामान बनता हो, तो हमें वहाँ २४ घंटे काम करना होगा या दो शिफ्टों से काम करना होगा। अरे, वह तो कहते हैं कि स्ट्राइक करो। यही हालत रही तो हमारा काम कैसे चलेगा? एक तो यह बात है। दूसरी बात यह है कि आज के युग में फौज को लड़ाई के मैदान में ले जाने के लिए हजारों ट्रक्स चाहिए। उसके लिए मोटर-लारी और जी चाहिए, वह पैदल का काम नहीं है। अपनी फौज को हमें जल्दी-से-जल्दी ले जाना है, पहाड़ों पर ले जाना है, और जगह पर ले जाना । अब जो यह हजारों ट्रक्स चाहिए वे कहाँ बनें ? उसके लिए हमें मजदूर चाहिए। अब इधर मजदूरों को भी कोई सिखलाता है कि ज्यादा पैदा करो? बही तो बड़ी मुश्किल बात बन जाती है। मज़दूरों से यह कहना चाहिए कि अपनी फौज के लिए आप को तोप, बन्दूक, गोला, एम्यूनिशन ( गोला-बारूद ) सब चीज़ बनानी चाहिए। तोप, बन्दूक के लिए स्टील ( इस्पात) चाहिए, कौन वह पैदा करेगा? ऊपर से तो बरसेगा नहीं। उसके लिए हमें कारखाना बनाना होगा। हमारे मुल्क में, हमारी घरती में बहुत लोहा पड़ा है, मगर उसके लिए हमें कारखाने बनाने होंगे । आज तक लोहा अंग्रेज बाहर से ले आता था और हमारा धन ले जाता था । अब स्वराज्य के बाद भी क्या हम लोहा बाहर से लाएंगे? नहीं, वह अब हमें इधर पैदा करना है। हमारे यहाँ एक कारखाना टाटा का है। देश भर में मकान बनाने के लिए जितना लोहा चाहिए, उतना भी उससे पूरा नहीं पड़ता। तो हम अपनी