पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/१२

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J कलकत्ता ३ जनवरी १९४८ बहनो और भाइयो, बहुत दिनों से आप लोगों से मिलने की ख्वाहिश थी। आपका प्रेम और मुहब्बत देख मेरा दिल भर आया है। चन्द दिन हुए, हमारे नेता हमारे प्राइम मिनिस्टर साहब भी इधर आए थे। उस दिन भी बहुत लोग जमा हो गए और वह अपने दिल की जो बातें आपको सुनाना चाहते थे, उस का मौका रह गया। आप लोग कलकत्ता में सब चीजें बहुत बड़े पैमाने पर करना चाहते हैं । आज भी आप लोग इतनी बड़ी तादाद में यहाँ आए हैं। इतनी बड़ी भीड़ को सुनाना भी मुश्किल हो जाता है। यदि पास और दूर के सब लोग शान्त हो जाएँ, तो चन्द बातें में आपको सुनाना चाहता हूँ। क्योंकि अब हमें ऐसा मौका बहुत कम मिलता है कि हम लोग आपके पास आकर आपको अपने दिल की बात कह सकें। कहने की बातें तो बहुत हैं, क्योंकि बंगाल के ऊपर, हिन्दुस्तान के ऊपर बहुत सी मुसीबतें गुजरी हैं। एक बात हम और आप सब चाहते थे कि हिन्दुस्तान आजाद हो जाए। तो हमारा देश तो आजाद हो गया। यहाँ जो पर- देसी हुकूमत थी, वह इधर से हट गई। वह तो बहुत अच्छा हुआ। हमारा