पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/१२५

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११० भारत की एकता का निर्माण हूँ। इतने समय में तो देश में बहुत बड़ी क्रान्ति हो गई है। इधर चार-पाँच महीनों से कुछ मैं बीमार पड़ गया था। आज पहली बार में बाहर निकलता हूँ। मेरे डाक्टरों ने मुझे इधर आने से मना किया था। उन की नाखुशी बर- दाश्त करते हुए भी मैं यहाँ आ गया हूँ। क्योंकि मैंने पटियाला महाराजा को इसके लिए वायदा दिया था। पटियाला महाराजा के साथ मेरी उतनी मुहब्बत भी है । उन्होंने मुझ को हिन्दुस्तान को गुलामी में से निकालने में और उसे एक बनाने में हृदय से साथ दिया था। मैंने उनको जो वायदा दिया था, वह वायदा पूरा करने के लिए मैं आज इधर आया हूँ। साथ ही आप लोगों को कुछ बातें समझाने के लिए भी मैं इधर आया हूँ। क्योंकि ऐसा मौका फिर नहीं आएगा। राजाओं के पास से राज्य ले लेना आसान है । क्योंकि जब तक हमारे ऊपर परदेसी हुकूमत थी, तब राजाओं के दिल में चाहे कुछ भी रहा हो, लेकिन तब वे भी आजाद नहीं थे। जैसे हम तब गुलाम थे, वे हम से भी दुगुनी गुलामी में फंसे हुए । अब हम सब आजाद है । यह आप समझ लें कि मैंने बहुत-से राजाओं के साथ प्रजा की तरफ़ से लड़ाई की ।बहुत-से राजा मुझ पर कुछ नाखुश भी थे। लेकिन आज जितनी मेरी राजाओं के साथ मुहब्बत है, उतनी और किसी की नहीं होगी। क्योंकि स्वतन्त्र राजाओं के दिल में भी देश के लिए उतना ही प्रेम है, जितना हमारे दिलों में है। उससे कम नहीं है। उससे कम होता, तो स्वतन्त्र हिन्दु- स्तान में किसी का राज्य नहीं चल सकता था। तो राजा लोग समझ गए और उन्होंने अपनी जगह समझ ली। बीच में एक मौका ऐसा आया था कि कई राजा अलग राजस्थान बनाने के लिए कोशिश कर रहे थे । जब पाकिस्तान बना तो उस समय यह हिन्दुस्तान के और टुकड़े करने की कोशिश भी हो रही थी। तब पटियाला महाराजा ने कहा कि ऐसा कभी नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि हिन्दुस्तान के राजा हिन्दुस्तान के साथ रहेंगे। उसी समय से मेरी उन से मुहब्बत हुई। वह मुहब्बत कभी टूट नहीं सकती। और चाहे कोई भी कहे कि हम राजाओं के साथ कैसे चल सकते हैं, मगर में आप से कहना चाहता हूँ कि मैं खुद चल सकता हूँ, तब आप क्यों न चलें। जब पहला स्वतन्त्र हिन्दुस्तान था, तो अपने पुराने इतिहास में हम देखें कि तब बड़े-बड़े राजर्षि हमारे देश में हो गए थे। इन्हीं राजा लोगों ने हिन्दु-