पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/१३०

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पेप्सू. का उद्घाटन, पटियाला ११५ कि इन नए राज्यों में हमें लोकशासन का प्रवेश कराना है। यह काम भी हम दो तरह से कर रहे हैं। एक ओर तो हम लोग यह काम कर रहे हैं और दूसरी तरफ़ रियासतों के राजा भी यही काम कर रहे हैं। कितने ही राजाओं ने बड़ी खुशी से हमें अपना साथ दिया है। बहुत-सी रियासतों में उनके राजाओं के सहयोग से यह काम भली प्रकार पूरा हो गया है। अब थोड़े-से राज्य बच रहे है, उन में भी सब ने लोक-शासन का सिद्धान्त तो स्वीकार कर ही लिया है और उस पर अमल भी हो रहा है। अब सिर्फ एक ही राज्य बाकी है, जो हैदराबाद है । बहुत-से लोग हिन्दु- स्तान की सरकार के लिए सोचते हैं कि हैदराबाद के बारे में वह कमजोरी क्यों दिखा रही है । लोग खीझकर पूछते हैं कि वह क्या कर रही है और अब क्या होगा। मैंने जब जूनागढ़ में प्रवेश किया था, तभी कह दिया था कि हैदराबाद यदि नहीं समझता, तो जो हाल जूनागढ़ का हुआ है, वही हैदरावाद का भी होगा। इसके बारे में दो मत नहीं हो सकते । लेकिन मेरी उम्मीद यह थी, कम-से- कम हमारे पिछले गवर्नर-जनरल लार्ड माउन्टबेटन की पूरी उम्मीद यह थी कि उनके जाने से पहले वह निजाम सरकार को समझा सकेंगे, उन्हें उनकी जगह बता सकेंगे । मौंटेन कर हैदराबाद का सलाहकार था, वह भी अंग्रेज था। उसने और हमारे गवर्नर जनरल ने मिलकर मुझसे कहा था कि एक साल के लिए आप हैदराबाद से एग्रीमेण्ट ( समझौता) करें । इस बीच हम समझौता कर लेंगे। मैंने यह बात मान ली। लेकिन जब समझौते की मांग हुई, तो फिर उन्होंने मौंटेन कर को भी हटा दिया। तब हमने दूसरे सलाहकार के साथ एक साल का समझौता किया। वे लोग जो समझौता करते थे, बही निजाम का राज चलाने के लिए बैठते थे। वे लोग अब लालच में पड़े कि हम को कुछ और दिया जाए। तो हमारे गवर्नर जनरल ने हमारी तरफ से आखिरी दिन तक कोशिश की। तब तक कोशिश की, जब तक वह यहाँ रहे । लेकिन निजाम की सरकार तो एक प्रकार की ब्रिटिश सल्तनत थी । एक प्रिय वस्तु थी, और उस को ब्रिटिश शाहंशाह का एक खास दोस्त कहा जाता था। हम भी चाहते थे कि यदि हमारे गवर्नर जनरल के हाथ से, जो उनका दोस्त है, कोई चीज़ हो जाए, तो बहुत अच्छा है । लेकिन उन्हें भी आखिरी दिन तक जो उम्मीद थी, वह पूरी न हो पाई। मैंने उनसे पहले से ही कहा था कि यह चीज़ बननेवाली नहीं है। चलवे