पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/१३९

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इम्पीरियल होटल, नई दिल्ली ३ अक्तूबर, १९४८ लाला देशबन्धुजी, दिल्ली निवासी दोस्तो और नारियो ! मापने जो प्रेमपूर्वक मेरा स्वागत किया, उसके लिए मैं आपको धन्यवाद देना चाहता हूँ। और जो मानपत्र आपने मुझे दिया है, उसके बारे में भी मैं आपका शुक्रिया अदा करता हूँ। इस समय पर मैं जो एक प्रकार का संकोच या एक प्रकार का एम्बेरेसमेंट अनुभव कर रहा हूँ, वैसा मैंने पहले कभी अनु- भव नहीं किया है। क्योंकि इस तरह से दिल्ली में ही मेरा स्वागत करना या इस तरह से मानपत्र देना, कहाँ तक योग्य है, इस बारे में मेरा मन अतिशय शंकाशील है। और मेरे सब साथी यहाँ बैठे हैं । खुद हमारे गवर्नर-जनरल साहब और हमारे प्राइम मिनिस्टर भी यहाँ बैठे हैं। उनके सामने आप लोग मुझे अलग करके इस प्रकार का मानपत्र देते हैं, वह आपके लिए कुछ भी हो, मेरे लिए तो एक प्रकार की उद्धताई ही है और मुझ को यह चीज़ बिलकुल नापसन्द है । ६ महीने से देशबन्धु जी मेरे पीछे लगे थे। दिल्ली के चन्द और निवासी भी मेरे पीछे लगे थे। मैं टालता रहा। लेकिन मैंने समझ लिया कि इन लोगों के दिल में एक ख्याल है। ये सोचते हैं मेरे सब साथी तो ज्यादे साल तक काम करने वाले हैं, लेकिन मेरे बारे में वह समझते हैं कि इनका दिन पूरा हो गया है। क्योंकि एक तो मेरे स्वास्थ्य को बड़ी ठोकर लगी है और उसमें से मैं बहुत