पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/१४६

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इम्पीरियल होटल, नई दिल्ली होगा। लेकिन हम इतने से सन्तोष मान के बैठ गए, तो हमारा काम नहीं चलेगा। अभी हमें क्या काम करना है, वहीं सोचना चाहिए। आप जानते हैं कि जब हमने हिस्सा-बाँट ( पार्टीशन ) कबूल किया तो उससे पहले हम अपनी आर्मी कम करना चाहते थे। क्योंकि हमारे पर उसके खर्चे का बहुत बड़ा बोझ है और इतना बोझ है कि हिन्दुस्तान उसे बर्दाश्त नहीं कर सकता । तो हम उसे कुछ कम करना चाहते थे। लेकिन जब फिसाद शुरू हुए तो हमने फौज कम करने का इरादा छोड़ दिया। उधर काश्मीर में झगड़ा शुरू हुआ। जब झगड़ा चलता रहा तो हम सोचने लगे कि हमें अपनी फौज तो कुछ बढ़ानी पड़ेगी। हालत यहाँ तक पहुँची कि दस बटालियन तो हमें नेपाल से लेने पड़े। अब यह सब खर्चा हम कहाँ से लाएँ और हम क्या इन्तजाम करें ? क्या हमारा मुल्क इस प्रकार का बोझ उठा सकता है ? क्या हमारी आमदनी बढ़ रही है ? हमारी आर्थिक दशा सुधर रही है ? ये सब चीजें हमारे सोचने की है। क्योंकि हम इन सब के बारे में न सोचें, तो हमारा बुरा हाल होगा। तो यह जरूरी है कि जिन लोगों के पास धन है और जिनके पास इल्म है, उन दोनों का इस्तेमाल हमें करना चाहिए। हमने अभी तक न कोई गवर्न- मेंट चलाई है और न हमने कोई बिजनेस या इण्डस्ट्री ही चलाई है। हमने सारी उम्न तो एक परदेसी सल्तनत के साथ लड़ने का इल्म पाया था, सो बह कर लिया। लेकिन अब मुल्क आजाद हो गया है, अब हमें उसको उठाना है। तो 'जिसके पास धन है और इण्डस्ट्री ( व्यवसाय ) चलाने का तजुर्बा है, वे हिन्दो- स्तान की आर्थिक स्थिति सुधार सकते हैं। वे लोग हमसे अलग बैठे हैं, और इधर हमारे मजदूर लोग, कारीगर लोग भी मांगते हैं कि भई ये कीमतें तो हर रोज़ बढ़ती जाती हैं और हमारे पास पूरा खाना-पीना तक भी नहीं है, सो हमको ज्यादा तनखाह दो। हमारे गवर्नमेंट सबैट भी यही कहते हैं, रेलवे में लोग पड़े हैं वे भी इसी तरह की बातें करते रहते हैं। सब मांगते हैं, मगर कोई यह नहीं सोचता कि उसकी अपनी जिम्मेदारी क्या है। हम यह सब कहां से लाएंगे? हमारे जो एक्सपर्ट ( विशेषज्ञ ) लोग हैं, उनसे हम कन्सल्ट (राय लेते) करते रहते हैं। हम अपने उद्योगपतियों को भी कन्सल्ट करते लेबरवालों को भी कन्सल्ट करते हैं, सब को कन्सल्ट करते हैं। सब की राय लेकर और सब सोच-विचार कर हमें तो एक ही रास्ता समझ आया है कि बहुत दिन जिन लोगों ने । 7