पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/१५३

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भारत की एकता का निर्माण दिन बाकी हैं, उन्हें इस तरह इस्तेमाल करूं जिससे मुल्क का भला हो । आप दुख बर्दाश्त करते हैं, उसके लिए हमारी सहानुभूति आपके साथ है, लेकिन अपने दिल में कोई बुरा भाव आपको पैदा नहीं करना चाहिए । एक और बात भी मैं कहना चाहता हूँ। बह यह कि रिफ्यूजियों की आड़ में कितने ही लोग हैं, जो लूट-काट में पड़े हैं। वे लोग बहुत बुराई करते हैं। हालत यहां तक पहुंच गई कि हमारे सप्लाई डिपार्टमेंट का परसों तनख्वाह बाँटने का दिन था, तब वहां एक टैक्सी लेकर, एक मोटर लेकर कुछ लोगों ने रेड ( आक्रमण) किया । एक अच्छी नई मोटर में चार आदमी बैठे, उनमें एक रिवाल्वर लेकर आया था। वहां एक बेचारा क्लार्क बैठा था, उसको रिवा- ल्वर से गोली मार कर वे पेटी उठा कर चले गए। कोई राज इस तरह से चल सकता है ? दिल्ली शहर में, हमारे कैपिटल में इस प्रकार की गुण्डाबाजी चल सकती है ? ऐसे लोगों के साथ किसी की क्या सहानुभूति रह सकती है ? इस प्रकार के जो लोग भीतर घुसते हैं, उनको किसी भी जगह पर नहीं रहने देना चाहिए । अगर उन लोगों की तरफ़ जो लोग सहानुभूति बताएँगे, वे अपने को खतरे में डाल देंगे, गवर्नमेंट को खतरे में डाल देंगे और मुल्क को भी खतरे में डाल देंगे। हमें उम्मेद है कि वे लोग पकड़े जाएँगे । लेकिन एक चीज़ फैल रही है और वह मैं देख रहा हूँ। बहुत-से हथियार लोगों के पास आ गए हैं, बहुत-सा गोली-बारूद आ गया है। उसका नतीजा भी हम देख रहे हैं। तो उससे हमें सावधान रहना है । दिल्ली शहर आज जितना अन-सैनिटरी ( अस्वच्छ ) हो गया है, इतना पहले कभी नहीं था। इसकी वजह यह है कि दिल्ली की आबादी बहुत बढ़ गई है । जितने रिफ्यूजी आए, सब यहां आबाद हुए। उन्हें कितना भी रोकें, लेकिन वे जाएँ कहां? उनके पास रहने की जगह भी नहीं है। आए तो जिस किसी तरह पड़े हैं। ऐसी हालत में दिल्ली की नाजुक स्थिति हो गई है। यहां रहने को जगह नहीं है। जब दिल्ली में दंगा-फसाद हुआ, उसमें यहां की पुलिस टूट गई, वह किसी को मालूम नहीं हुआ। दिल्ली की पुलिस की सब शिकायत करते हैं, ठीक है । लेकिन अब यहां जो पुलिस है, उसमें से आधी पुलिस तो रिफ्यूजियों में से हैं। हम कोशिश करते हैं, समझाते हैं, उनको ट्रेंड करते हैं कि वे ठीक काम करें। लेकिन आखिर जब तक पब्लिक ओपीनियन (जनमत) हमारे साथ न रहे तब तक कुछ न होगा। चाहिए तो यह कि सब अपना धर्म समझे