पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/१५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गुजरात और महाराष्ट्र समाज के अभिनन्दनोत्सव में १२ अक्तूबर, १९४८ काका साहब, महाराष्ट्र और गुजरात के भाइयो और बहनो ! चन्द दिन हुए, काका साहब ने मुझ से कहा कि हम एक स्नेह-सम्मेलन करना चाहते हैं और गुजराती और महाराष्ट्र समाज, सब एक साथ आपसे मिलना चाहते हैं। काका साहब ने कहा तो मैं इन्कार कैसे करता? मैंने कबूल कर लिया कि मैं आ जाऊँगा । और आज यहां आने का मतलब यह है कि एक राष्ट्र पर्व के दिन आप सब से मिलने का मौका मुझे मिले। क्योंकि आज हिन्दुस्तान का एक बहुत बड़ा और बहुत पुराना राष्ट्र पर्व है। यह दशहरा हम सब के लिए बहुत बड़े उत्सव का दिन है, क्योंकि इस दिन हमारे देश की एक बहुत बड़ी विजय हुई थी। तभी से आज के दिन हिन्दुस्तान हर साल अपना उत्सव मनाता चला आता है । आज हिन्दोस्तान का एक और प्रकार के उत्सव का दिन भी है। क्योंकि आज हमारे हिन्दोस्तान में कोई खतरा बाकी नहीं रहा, कोई झगड़ा-फिसाद बाकी नहीं रहा है और अब एक प्रकार से सारे हिन्दुस्तान में शान्ति का वाता- वरण स्थापित हो गया है । यह बहुत अच्छी बात है । क्योंकि जब तक मुल्क में शान्ति नहीं होती, तब तक मुल्क की प्रगति नहीं हो सकती और हम आगे भी नहीं बढ़ सकते । हमें आजादी तो मिली, पर उसके साथ देश का टुकड़ा