पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/१६०

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गुजरात और महाराष्ट्र समाज के अभिनन्दनोत्सव में परदेसी लोग आगए । पहले पहल जब परदेसी लोग आए तब हमारा समाज भी सड़ गया था, हम गिर गए थे। तो जो परदेसी लोग इधर आए, उन्होंने हमारे मजहब पर आक्रमण किया और हमारे मुल्क में जबरदस्ती अपने मजहब का प्रचार किया और यहां के लोगों का ज़बरदस्ती धर्मान्तर किया। अब हमारे अपने लोग धर्मान्तर करके अलग मजहब में चले गए, उसमें किसकी गलती है ? जो ज़बरदस्ती करनेवाले थे, उनकी जो गलती थी, वह तो थी ही, लेकिन हमारी अपनी गलती भी जरूर थी। हमारे में से लाखों लोग ईसाई हो गए, करोड़ों मुसलमान हो गए, वह क्यों ? इसमें हमारी अपनी गलती थी। हम में से जो गरीब थे, उनकी रक्षा हमने नहीं की और ज्यादातर जो लोग गए, वे गरीब थे और उन पर जबरदस्ती की गई थी। लेकिन जब एक बार गए तो पीछे वहां ही डट गए और ऐसे डट गए कि जो असली थे, वे उनसे भी अधिक बुरे बन गए । अब इस तरह से जो सिलसिला जारी रहा, उसमें आगे चलकर ऐसी हालत हो गई कि एक दूसरे देश के लोग यहां आ गए और दो सौ सालों से वे बीच में बैठ कर हिन्दू और मुसलमानों में झगड़ा पैदा करते रहे। इसी झगड़े से उनको फायदा था। इसी से उनको इधर अपना राज जमाने में आसानी हो गई । बहुत समय के बाद हिन्दू और मुसलमान दोनों समझे कि यह तो बुराई हो रही है और इस से हम दोनों मर रहे हैं। तो बहुत समय के बाद दोनों समझे और कहने लगे कि हमें आपस में मिलकर इन परदेसियों को हटाना चाहिए । तब हटाने की कोशिश शुरू हुई। इस परदेसी राज में चन्द लोग ही पढ़े-लिखे थे। इनमें से कुछ पढ़े-लिखे लोग परदेसियों के साथ मिलकर उनकी खुशामद कर कुछ इधर-उधर टुकड़ा लेते थे। थोड़ा-सा हिस्सा लेते थे। बाकी पढ़े-लिखे लोग सब से पहले अंग्रेजों की चाल को समझे। उधर सारी जनता को तो एक ही बात सिखाई जाती थी कि अंग्रेज़ के राज में बाघ और बकरी एक घाट पर पानी पी सकते हैं, इसलिए उनका राज अमर रहे । जब हम पढ़ते थे, तो हमारे स्कूलों में यही चीज सिखाई जाती थी। तब हमको हमारी गुलामी इतनी मीठी लगने लगी कि हम तो यही समझते थे कि यह राज्य अमर रहे । अब बाकी जो पढ़े-लिखे लोग थे, जो लोग अंग्रेजों के नौकर नहीं थे, वे सब से पहले समझे कि यह चीज़ तो बुरी है । तो पढ़े-लिखे हिन्दू और मुसलमान मिलकर काम करने लगे। लेकिन जितने अंग्रेजी पढ़े-लिखे लोग थे, वे उखड़ने लगे, क्योंकि वे टिक न सकते थे।