पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/१६२

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गुजरात और महाराष्ट्र समाज के अभिनन्दनोत्सव में १४५ है, जो हमको बहुत बड़े खतरे में डालनेवाली है । यह भावना इस बात की है कि आज बंगाली सोचने लगे हैं कि बंगाल सिर्फ बंगालियों के लिए है, महाराष्ट्र के लोग सोचने लगे हैं कि महाराष्ट्र महाराष्ट्रियों के लिए है, उधर मद्रास के लोग कहते हैं कि मंद्रास मद्रासियों के लिए हैं। इस प्रकार के जो प्रान्तीय भाव आ गए हैं, उन से राष्ट्रीय भावना का खून होता है। यह प्रान्तीयता का भाव एक जहर है, जिसका प्रभाव धीरे-धीरे आगे बढ़ता है। आज मेरे पास बहुत-सी शिकायतें आती हैं। बंगाली और बिहारी आपस में यहां तक लड़ते हैं कि एक दूसरे के साथ काम-धन्धा नहीं कर सकते है, मार-पीट में पड़ जाते हैं। इसी प्रकार उड़ीसा और बिहार के और तामिल- नाद और आन्धों के बीच में चलता है। उधर आसाम और बंगाल का चलता है। हम लोग गुजरात और महाराष्ट्र में इस प्रकार का काम कभी नहीं करते थे और न हमें करना ही चाहिए। आपस में कुछ भी झगड़ा हो जाए, तो उसका फैसला शराफत से कर लेना चाहिए । इसी प्रकार का काम गुजरात और महाराष्ट्र का आपस ही में नहीं, सारे हिन्दुस्तान में होना चाहिए। क्योंकि अव हिन्दुस्तान के पास यह एक पहला मौका आया है, जब सैकड़ों सालों के बाद हमने हिन्दुस्तान को एक बनाया है। इतना बड़ा हिन्दोस्तान इतिहास में और कभी नहीं था। पहले बहुत समय तक अलग अलग छोटी-छोटी रियासतें थीं। अधिकांश समयों में हमारा देश टुकड़ों में बँटा रहा । अब हमने सबको साफ करके एक नक्शा बनाया । अब हमारा काम है कि उसको उठाएँ। तो जब हिन्दुस्तान को दुनिया के और मुल्कों के मुकाबले में रखना हो, तो हमें छोटी- छोटी बातों के झगड़ों में नहीं पड़ना चाहिए। साथ ही आपको यह भी देखना चाहिए कि यह जो हमारा एक अंग, एक अवयव काटकर अलग कर दिया गया, उसमें से बहुत खून गिरा है और वह गिरना ही था । एक जिन्दा अंग को काटने से खून तो गिरता ही है और उसकी चोट भी बहुत लगती है। जो पिछला विश्वयुद्ध हुआ था, उसकी चोट भी सारी दुनिया को लगी थी और उससे हम भी नहीं बचे थे। इन दो चोटों का फल यह हुआ है कि आज सामान्य लोगों के कष्टों का अन्दाज भी कठिन है। इतना अधिक कष्ट है। हर चीज़ का, यहां तक कि जिन्दगी की जरूरियात की और खाने-पीने की चीजों का दाम भी बहुत अधिक बढ़ गया । इतना अधिक बढ़ गया है कि सामान्य लोग उसको बरदाश्त नहीं कर सकते । आज मजदूर भा. १०