पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/१६५

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. स्वतंत्र भारत की एकता का निर्माण करे, ऐसी नौबत हम कभी न आने देंगे । दुश्मन को हमारा दरवाजा कभी खुला नहीं मिलेगा। हम उसका बराबर बन्दोबस्त करेंगे। लेकिन हमारे देश के भीतर जो हालत है, उसमें हमें आप लोगों का साथ अवश्य चाहिए । आपका साथ नहीं मिलेगा, तो काम नहीं होगा। और अगर हमारी भीतर की हालत ठीक न हो, तो हम बाहर का काम भी नहीं कर सकते, क्योंकि आज की दुनिया में हमें जो फौजें रखनी पड़ती हैं, उन फौजों के साथ और भी बहुत-सी चीजें हमें चाहिए । आप देख लीजिए कि हमें जब एक हैदराबाद पर हल्ला करना था, तब उसी के लिए हमें कितनी तैयारी करनी पड़ी। हमें हल्ला करना पड़ा, क्योंकि हैदराबाद का दिमाग बिगड़ गया था और वे समझे थे कि अब अँग्रेज़ गए, तो हो गए । अगर हैदराबाद कोई व्यक्ति होता, तो हम उसे पागलखाने में भेज देते । लेकिन वह तो बम्बई जितना बड़ा है। उसमें जिन लोगों पास सत्ता भी, उन लोगों ने यह समझा कि अब तो कौन हमको रोक सकता है। और उनको यह उम्मीद भी थी कि हम को पाकिस्तान मदद करेगा या कोई परदेसी लोग मदद करेंगे, जो उनके पुराने दोस्त थे। लेकिन उन्होंने हमारी ताकत की कोई परवाह नहीं की। वे समझे कि हम तो लड़ ही नहीं सकते, या हम में कोई ताकत है ही नहीं। हमने बार-बार कहा कि जो हाल जूनागढ़ का हुआ, वही तुम्हारा भी हो जाएगा। समझ जाओ। लेकिन उन्होंने नहीं सुना । अच्छी बात है । नहीं सुना, तो आखिर देख लिया। बहुत से बाहर वाले लोग गुस्से भी हुए। कि यह क्या हुआ? और सौ चूहे मार के बिल्ली हज करने के लिए जाती है, ऐसी अंग्रेजों की चाल है। सारी दुनिया में सदियों से आज तक अंग्रेजों ने इसी तरह से काम किया, हमने उसकी अपेक्षा बहुत अच्छी तरह से काम किया। लेकिन उनको बहुत क्रोध आया कि यह कैसे हो गया? अब वे पंच कैसे बनेंगे । ठीक है, अब यह तो भीतर की बात थी। लेकिन बाहर की बात हो, तब कितना क्या कुछ करना पड़ेगा ? जब भीतर के लिए हमको इतना कुछ करना पड़ा। हमारा पड़ोसी, जो हमारे से ही अलग हुआ, बार-बार हमको दुश्मन कहता है । हमें बार-बार दुश्मन कहकर वह हमारे साथ दोस्ती कैसे करेंगे ? उसने दुश्मन होना हो तो उसकी इच्छा। हम तो चाहते हैं कि हम दोस्ती रखें। लेकिन इसी तरह से वह हमें दुश्मन-दुश्मन कहते रहें, तो दोस्ती महीं हो सकती। मुहब्बत के लिए तो उन्हें अपनी चाल बदलनी पड़ेगी। हम तो 4