पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/१६६

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गुजरात और महाराष्ट्र समाज के अभिनन्दनोत्सव में १४६ उनकी जगह पर जाना नहीं चाहते हैं, लेकिन वे हमारे काश्मीर में जाकर घुस गए है। जब तक वे वहां से नहीं हटेंगे, तब तक दोस्ती की बात उनकी ज़बान पर अच्छी नहीं लगती। अब वे कहते हैं कि काश्मीर के बिना पाकिस्तान रह नहीं सकता। नहीं रह सकता, तो आओ पीछे। किसी ने रोका है ? लेकिन हम वहां से हटनेवाले नहीं हैं। हम इस तरह से कभी नहीं हटेंगे। मैंने आपसे कहा, अब आकर हम अपने नीचे की ओर देखें। बर्मा में देखें, मलाया में देखें, चाइना में देखें और साउथ-ईस्ट की सब जगहों को देखें। सब देशों में आपस में झगड़ा-ही-झगड़ा चलता नज़र आता है। ऐसा ही अगर हिन्दु- स्तान में भी हुआ, तो हमने जो कुछ पैदा किया है, वह सब गुमा देंगे। ऐसा नहीं करना चाहिए । उसके लिए हमें क्या करना है ? सब से ज़रूरी बात यह है कि हमें अपनी मध्यस्थ सरकार को और भी अधिक मजबूत बनाना चाहिए। हमारे कई लोग कहते हैं कि मध्यस्थ सरकार का कोई विरोध नहीं करता, इसलिए हमें उसका विरोध करना चाहिए। करो, ठीक है। विरोध करने में कौन ना कहता है, करो। लेकिन विरोध करने का मतलब यह नहीं कि कोई काम ही नहीं होने देना चाहिए । अब देखो, हमारे जहाज आकर वहां बन्दरगाह पर पड़े हैं। हमने परदेस से अनाज मंगवाया था, अब जहाज बम्बई के बन्दर में आकर पड़े हैं। अब वहां जो मजदूर डॉक पर काम करनेवाले हैं, वे आज हड़ताल पर चले गए हैं। और जहाज वहां पड़े हैं। इधर मजदुर हड़ताल करता है और उधर जिन के पास अनाज पहुंचाना चाहिए वहां पहुंचा नहीं सकते । अब उनको कोई यह नहीं कहता कि भाई, हमारे हिन्दुस्तान की आर्थिक हालत ऐसी है कि थोड़ा-सा दुख बरदाश्त करो। अगर आप यह न करेंगे तो हमारे अपने लोग भूखे मरेंगे। जब आप हड़ताल करते हैं तो हजारों लाखों की भूष की परवाह नहीं करते । अब यहां तक कहते हैं कि रेलवे में हिस्सा करो। रेलवे में लेबर का हिस्सा कर दो। पोस्ट आफिस चलता है, तो उसमें भी लेबर का हिस्सा कर दो। सब चीजों में मजदूरों का हिस्सा कर दो। क्या दुनिया में किसी और जगह पर ऐसा हो गया है, जो अब हिन्दुस्तान में ही ऐसा करना है? कल ही तो हमारी गुलामी गई है। अभी तो हमारे पैर भी पूरी तरह मज़बूत नहीं हुए। उसके पहले यह सब चीज़ एक साथ कर दो। यह कैसे हो सकता है ? हम भी चाहते हैं कि हमारे मजदूर तगड़े हों और हमारे मुल्क में -