पृष्ठ:भारत की एकता का निर्माण.pdf/१६९

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१५२ भारत की एकता का निर्माण घर मजबूत होना चाहिए और ऐसा नहीं होना चाहिए कि घर-घर हमारी लड़किएँ बिकती रहें । गैर लोग औरतों को उठा ले जाएँ और हम बेकार रोते ही रहें। इसके लिए हमें बन्दोबस्त करना है कि हमारी केन्द्रीय सरकार और हमारी आर्मी मजबूत हो। और अगर हमें अपनी आर्मी मजबूत रखनी हो, तो उसके लिए जितने सामान की जरूरत होती है, वह सब हमें इधर बनाना चाहिए और वह सब बनाने के लिए हमें कारखाने चाहिएँ । तो इन कारखानों को कौन चलाए ? बहुत से लोग कहते हैं कि इन्हें नेशनलाइज करो। सब कारखानों को राष्ट्रीय कर दो। अरे, हम में तो अभी अपनी गवर्नमेंट चलाने की भी पूरी ताकत नहीं आई है। वह कारखाना चलाना तो फिर दिवाला निकालने की बात है। क्योंकि हम वह इल्म जानते ही नहीं हैं। तो इसके लिए हमारे जो धनिक लोग हैं, उनको समझाना पड़ेगा। उनको साथ लेना पड़ेगा। सो खाली धन का साथ नहीं है। उनके दिमाग को भी साथ लेना पड़ेगा कि मिलों को कैसे चलाया जाए। अब भी तो हमारे यहां बड़े-बड़े कारखाने बने हुए हैं। सब चीजें हमने गुलामी में भी बनाई तो अब आजादी में इससे ज्यादा क्यों नहीं बना सकते ? बना सकते हैं। दुनिया भर में जितना इल्म है, उससे ज्यादा हमारे लोगों के दिमाग में है । लेकिन हम संग- ठित होकर चल नहीं सकते हैं। व्यक्तिगत अलग-अलग अपनी अपनी राय रखते हैं। वह नहीं होना चाहिए। हमें अपने समाज को संगठित करना चाहिए। तो इस संगठन के लिए पहले तो हमें निश्चय कर लेना चाहिए कि हम आपस में झगड़ा या फसाद नहीं करेंगे। देश के हित की खातिर पांच साल मिल कर काम कर लो। हम लोग तो अब बुड्ढे हुए। हमारा काम तो देश को गुलामी से छुड़ाना था सो वह तो पूरा हो गया । लेकिन देश को उठाने के लिए नौजवान तैयार न हों तो फिर बहुत मुश्किल हो जाएगी। यह बात नहीं है कि हमारे नौजवानों में दिमाग न हो। उनका दिमाग तो बहुत तेज़ है । बल्कि वह ज्यादे तेज हो गया है, उसी से मुसीवत होती है । जब दिमाग ज़रूरत से ज्यादा तेज हो जाता है, तो हर चीज़ में गलती निकालने लगता है। हर बात की टीका करना या टिप्पणी करना और उस पर प्रैक्टिकल (व्यावहारिक) निगाह से न देखना एक बहुत बड़ा दोष है। किताब में क्या लिखा है, सिर्फ यही देखने से काम नहीं चलता। वह तो हाथ-पांव चलाने की बात है। 1